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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
३७४ पैरा ४; नज़ीर देखो-5 Bom 181; पदाजीराव बनाम रामराव ( 1888 ) 13 Bom 160; अमावा बनाम महद गौड़ ( 1896 ) 22 Bom 416. दफा २९९ पदोत्कर्षवारिसका हक़ दत्तकसे नष्ट नहीं होता
अगर लड़का अपनी स्त्री या बच्चे या अन्य दूसरा नज़दीकी वारिस वमुक़ाबिले अपनी माके छोड़कर मरजाय, और उसकी माको पतिसे ऐसा अधिकार प्राप्त हो चुका हो कि “यदि लड़का मरजाय तो दत्तकपुत्र लेना" यद्यपि मा पतिके दिये हुए अधिकार द्वारा दत्तकपुत्र लेने की अधिकारिणी है परन्तु दत्तक नहीं ले सकती, यदि ले तो नाजायज़ होगा । इस तरहपर समझो कि
ब (विधवा)
ल (लड़का )
स (विधवा) जैसे-अ, मरगया और उसने अपनी विधवा ब, तथा एक पुत्र ल, को छोड़ा। अ, के मरनेपर ल, अपने बापकी छोड़ी हुई सब जायदादपर काबिज़ हो गया, ल, अपनी विधवा स, को छोड़कर मरगया, और ल, के मरनेपर उसकी विधवा स, पतिकी छोड़ीहुई जायदादपर काबिज होगयी बतौर उसके वारिसके । स, मरगयी और उसके मरनेपर ल, की मा ब, बहैसियत उत्तराधि कारके जायदादकी वारिस हुई और काविज़हुयी । ब, को पतिसे अधिकार मिलचुकाथाकि लड़केके मरनेपर दत्तक लेवे, मगर अब वह नहीं ले सकती
और अगर लेवे तो दत्तक नाजायज़ होगा। माना गया है कि जब उसका लड़का एक विधवा छोड़कर मरगया तो उसका अधिकार दत्तक लेनेका चला गया; देखो-कृष्णराव बनाम शंकरराव (1891 ) 17 Bom. 164; माणिक्यमल बनाम नन्दकुमार (1906 ) 33 Cal. 1306. दफा ३०० रामकिशोर बनाम भुवनमयी वाला मुकदमा
__इसी तरहका एक मशहूर मुकदमा देखो, जो बंगालमें पैदा हुआथा और प्रिवीकौन्सिल तक वहालरहा। पहिले नीचेके नक्शे को देखो
१ गौर किशोर
भवानी किशोर ( लड़का) भुबनमयी (विधवा-प्रतिवादी)
चन्द्रावली (विधवा ) रामकिशोर ( दत्तक पुत्र-वादी )
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