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दफा २६६-३० ]
दत्तक सम्बन्धी अन्य ज़रूरी बातें
नं० एक, दो और तीनको छोड़कर मरगया । नं दो, चारको छोड़कर लावल्द मरगया; तब नं० तीनने, पांचको दत्तक लिया | नं० पांच मुद्दई है और नं ४ मुद्दालेह |
गौरकिशोरने एक वसीयत किया जिसमें लिबाकि "अगर मेरी स्त्री चन्द्रावलीका औरसपुत्र भवानी किशोर मरजाय, तो वह दत्तक लेवे” गौर केशोर मरगया और उसने भवानीकिशोर लड़का तथा चन्द्रावली विधवाको छोड़ा। अपने बाप के मरनेपर भवानी किशोर उसकी सब जायदादका वारिस जायज़ हुआ और काबिज होगया । भवानीकिशोर धीरे धीरे बड़ा हुआ, और उसकी शादी हुई तथा वह जवान हुआ । जवानी में वह लावल्द मरगया । उसने भुवनमयी अपनी विधवाको छोड़ा। तब चन्द्रावलीने पतिकी आशाके अनुसार रामकिशोरको दत्तक लिया । रामकिशोरने भुवनमयी विधवा पर जायदाद वापिस लेनेकी नालिश की। यहांपर यह याद रखना कि बंगालमें विधवा अपने पति के जायदादकी वारिस होती है चाहे उसका पति खानदान में शामिल शरीक अपने भाइयोंके रहता हो । जुड़ीशल कमेटी बंगालने दावा रामकिशोरका खारिज कर दिया । अन्य बातोंके साथ साथ यह तजवीज़ किया गया कि -- भवानीकिशोर इतने दिन ज़िन्दा रहा था कि वह सब धार्मिक कृत्यें जो उसके बाप गौरकिशोरके लिये होना आवश्यक थीं सब अदा करचुका होगा तथा वह मौरूसी जायदादका बतौर वारिस मालिक हुआ था जिसपर उसका पूरा अधिकार मिस्ल मालिकके था । अगर वह अपने समयमें जायदाद किसीको देदेता या अपने क़ब्ज़े से हटा देता अथवा एक लड़का दत्तक लेलेता, तो जिसे भवानीकिशोरने जायदादका मालिक बनाया होता, जायदाद ज़रूर उसे पहुंच जाती और वह इसतरह पर उसका मालिक बन जाता । यदि ऐसा होता तो गौरकिशोरका इरादा नष्ट होजासकता था । भवानी किशोरके मरने पर उसकी विधवा भुवनमयी जायदादकी वारिस हुई तो ऐसी सूरत में रामकिशोर जायदाद उससे नहीं ले सकता है। अदालत ने और भी ऐसी सूरतें बयान कीं हैं कि जिनसे भुवनमयीके क़ब्जेसे जायदाद नहीं अलहदा हो सकती थी । यह भी तजवीज़ किया गया है कि भुवनमयीके मरनेपर इस जायदाद का वारिस वह होगा जो भवानी किशोर के मरने पर होता, अर्थात् दत्तकपुत्र उस वक्त भी जायदाद नहीं पासकेगा जब भुवनमयी मरजाय । इस मुक़द्दमें में यह सिद्धान्त लागू किया गयाकि पदोत्कर्ष वारिसका अधिकार दत्तक से नष्ट नहीं हो सकता । इस केसमें विधवा चन्द्रावलीके मुक़ाबिलेमें भवानी किशोर लड़के का हक़ पदोत्कर्ष है । और अगर भवानी किशोर बिनव्याहा मर जाता तो जायदाद फिर चन्द्रावली उसकी माको पहुंच जाती, उस वक्त उसे दत्तक लेनेसे दूसरा असर पैदा होता। यानी यह कि, उस समय दत्तक लेने से चन्द्रावली सिर्फ अपने अधिकारको घटा देती नकि किसी दूसरे के अधिकारको । उस वक्त दत्तक लेना योग्य हो सकता और उसका फैसला मामूली दत्तक के
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