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दफा २५६-२६३ ]
दत्तक लेने का फल क्या है
पहिले था मगर दत्तक पुत्र मा के स्त्रीधन का वारिस होगा - तीन कौड़ी बनाम दीनानाथ 3 Suth 49 बम्बई के पंड़ितोंने भी यहीराय मानी है W. & B. 513.
दत्तक पुत्र उसका भी वारिस होगा जो गोद लेने वाली माने अपने बाप से उत्तराधिकार में पाई हो; दत्तक को औरस पुत्र के समान सब अधिकार प्राप्त होते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्टने इस विषयमें तय किया है देखो; श्याम कुंवर बनाम गया 1 All. 256 और देखो उमाशङ्कर बनाम कालीकमल 6 Cal. 256; 10 I. A. 138; S. C. 10 Cal. 232; सरयूकंथ नन्दी बनाम महेशचन्द्र 9 Cal. 70.
सौतेली
मा की जायदादका वारिस
दफा २६२ दत्तक पुत्र नहीं होगा
दत्तक पुत्र सौतेली मा की जायदाद का वारिस नहीं होगा केवल उसी माकी संपत्ति पायेगा जिसने उसे गोद लिया है, और गोद लेनेवाली मा भी दत्तक पुत्रकी वारिस होगी यह बात आगे कहेंगे ।
अन्नपूर्णा बनाम फाब्
189, 23 Mad. I. L. R; 23 I, A: 246.
दफा २६३ क्या दत्तक पुत्रकी निजकी जायदाद उसके
साथ जायगी
दत्तक पुत्रको गोद लेनेसे पहिले अगर कोई जायदाद बतौर वारिस के अलहदा मिली हो तो वह जायदाद दत्तक पुत्रकी बनी रहेगी । बिहारीलाल बनाम कैलाशचन्द्र 1 Cal.W.N.12 (1896) और देखो; इस किताबकी दफा २७७ मगर बम्बई हाईकोर्टने एक मुक़द्दमे में इसके विरुद्ध माना देखो, दत्तात्रेय सखाराम देवली बनाम गोबिन्द शम्भा जी कुलकर्णी (1916) 18 Bom. L. R. 258. मामला यह था कि महादेव और शम्भाजी दोनों भाई अलहदा २ जायदाद के मालिक थे, महादेव मर गया और उसने अपनी विधवा पार्वतीबाई तथा एक पुत्र रामचन्द्र और तीन लड़कियोंको छोड़ा । महादेवके मरने के थोड़े ही दिनों बाद पार्वतीने रामचन्द्रको दत्तक दे दिया, दत्तक देनेके १२ वर्षके पश्चात् पार्वतीबाईने पतिकी जायदाद दत्तात्रेय मुद्दईके हाथ रेहनकर दी मुद्दईने शम्भाजीके दो पुत्रोंपर उस जायदाद पर क़ब्ज़ा पानेकी नालिश की, दोनों पुत्र मुद्दालेह नं० १ और २ हैं । मुद्दालेह ने जवाब में कहा कि पार्वती बाई को रेहन करने का अधिकार नहीं था, तीनों लड़कियोंकी तरफसे रेहन स्वीकार कर लिया गया था ।
अदालत मातहतने मुक़द्दमा डिस मिस किया और पहली अपील में फैसला बहाल रहा दूसरी अपील बम्बई हाईकोर्टके सामने जस्टिस बेचलर