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दफा २८४-२८७]
वामुष्यायन दत्तक
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जैसा कि ऊपर बयान किया गया है इसी प्रकारसे द्वामुष्यायन दत्तक को सरकार हिन्दूला, ट्वेिलियन हिन्दूलों में भी माना गया है द्वामुष्यायन दत्तकके लिये इकरार होना परमावश्यक है तथा उस इकरारके अनुसार दोनों के बीचमें वैसाही बर्ताव रहना चाहिये, जिससे उस इकरार के तोड़ दिये जानेकी कोई बात पैदा न हो जाय ।
हालके एक मुकद्दमे में माना गया कि गोद देते समय यदि स्पष्ट रूपसे द्वामुष्यायन प्रकाशित न कर दिया गया हो तो वह द्वामुष्यायन नहीं माना जायगा--देखो ( 1918 ) 20 Bom. L. R. 161. दफा २८५ डामुष्यायन और सादे दत्तकमें क्या फरक है
__ सादा दत्तक वह है, कि जब लड़का अपने असली खानदानसे रिश्ता तोड़कर दत्तक लेनेवाले के खानदान में जाता है और सिर्फ दत्तक लेनेवालेके धनमें भाग पाता है और उसीकी धार्मिक कृत्य पूरा करता है। द्वामुष्यायन दत्तकमें लड़केका रिश्ता असली खानदानसे नहीं टूटता, और वह दोनों पिताओं यानी अपने असली पिता और दत्तक लेने वाले पिता की जायदाद पाता है तथा दोनों, पिताओंकी धार्मिक कृत्य पूरा करता है सिवाय इसके और कोई फरक द्वामुष्यायनमें नहीं है -25 Bom. 537, 542. दफा २८६ अनित्य द्वामुष्यायन
'अनित्य' शब्दका अर्थ है क्षणिक या थोड़ा समय । जो लड़का दूसरे गोत्रसे मुण्डन संस्कारके बाद गोद लिया गया हो और यह इक़रार भी हो गया हो कि यह पुत्र दोनों बापों का होगा तथा क्रिया कर्म दोनोंका करेगा और दोनोंकी जायदाद पावेगा तो वह द्वामुष्यायन दत्तक अनित्य कहलाता है अर्थात् थोड़े समयके लिये ऐसा दत्तक होता है और दत्तक पुत्र जो इस तरीके का होगा वह दोनों पिताओंकी धार्मिक कृत्य करेगा और जायदाद पावेगा। मगर उस दत्तक पुत्रक, लड़का अपने असली गोत्रको लौट जायेगा गोद लेने वाले पिता के गोत्रमें नहीं रहेगा और न जायदाद पावेगा इसीसे इस गोद को अनित्य कहते हैं और आजकल इस निस्मका गोद कानूनन नाजायज़ माना गया है देखो-1W. Macn. '71; शमशेर बनाम दिलराज 2 S. D. 169 (216); 26 All. 472. दफा २८७ नम्बोदरी ब्राह्मणोंमें द्वामुष्यायन जायज़ है
हिन्दुस्थानके पश्चिमीय हिस्सेमें नम्बोदरी ब्राह्मणोंमें बिला किसी इकरारके द्वामुष्यायन दत्तक जायज़ माना जाता है, उन लोगोंमें इसी क्रिस्मकी हत्तककी रवाज आम है देखो, 11 Mad, 167. 178.