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दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
सकता अर्थात् दोहिता, भानजा, मौसीका लड़का, गोद नहीं लिया जा सकता । ये लड़के गोद क्यों नहीं लिये जा सकते ? देखो - दफा १७२, १७७ और दफा १७२ क सिद्धांत पर विचार करो ।
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दफा १७४ अपनी जातिमें दत्तक लेना जायज़ है
( १ ) महर्षि मनु दत्तक पुत्रकी तारीफ कहते हैं किमाता पिता वादद्यातां यमद्भिः पुत्रमापदि सदृशं प्रीतिसंयुक्तं सज्ञेयो दत्रिमः सुतः ।
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पुत्रोंके सम्बन्धमें इसका वर्णन किया जा चुका है देखो दफा ८२, ८६, ८६ यहांपर 'सदृशं' शब्दका अर्थ प्रयोजनीय है दत्तक चन्द्रिका में इस शब्द की व्याख्या ऐसी है:
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'सदृशं सजातीयम् । यत्त सदृशं न जातितः किंतुकुलानुरूपैर्गुणैस्तेन क्षत्रियादिरपि ब्राह्मणस्य पुत्रो युज्येते इति मेधातिथि व्याख्यानम् । तत्रायमभिसंधिः औरसासत्वे क्षत्रियादेरसमानजातीयतया पिण्डोदकाद्यन ईत्वेपि नामसंकीर्तनादि प्रयोजनकतया पुत्रत्वमुत्पाद्यत एव शास्त्रीयत्वात् परन्त्वल्पोपकारतया ग्रासाच्छादनमात्रभागित्वं तदाह कात्यायनः । असवर्णास्तु ग्रासाच्छादन भागिन इति ।
'सहरों' शब्द जो मनु के श्लोक में आया है वह सजाति का बोधक है मगर मेधातिथिका कहना है कि यह शब्द जातिका बोधक नहीं है बल्कि कुल के अनुरूपही गुणका बोधक है । क्षत्रियादि कहने से क्षत्री, वैश्य, शूद्रका अर्थ सम्भव हो सकता है परन्तु व्याख्याकी गति द्विजों की लाइन में है इसलिये यहां पर 'आदि' शब्द से द्विज मात्रका अर्थ ग्रहण करना प्रयोजनीय है । इस जगह आक्षेप किया गया है कि असमान जातियोंका पिण्डोदक कृत्य औरसके स्वत्वमें योग्य नहीं और ऐसा लड़का जो असमान जातिका गोद लिया गया हो वह सिर्फ कहने भरका लड़का होता है और उस लड़के से गोद लेने वाले का नाम चाहे भले ही चले मगर वह दूसरे मतलबका नहीं है ऐसे लड़केसे पिण्डोदक क्रिया नहीं हो सकती इसलिये उसको जायदाद में