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दफा २३१-२३८ ] दत्तक सम्बन्धी आवश्यक धर्म कृत्य क्या हैं ? २५१
दफा २३५ दत्तकपुत्रका दत्तक पिताके वंश में दत्तक लेना
जब कोई लड़का किसीके दत्तक चला जाता है तो फिर वह ऐसे किसी लड़केको दत्तक नहीं ले सकता जो यदि वह दत्तक पुत्र, दत्तक पिताका और स पुत्र होता उस हालत में वह वैसे लड़के को गोद न ले सकता था देखो, सरकार काल आफ एडाप्शन पेज ३८७.
दफा २३६ दत्तकपुत्र का दुवारा गोद न लिया जाना
जो लड़का एक दफा दत्तक ले लिया गया है वह दुबारा दत्तक नहीं लिया जासकता देखो सरकारका लॉ आफ एडाप्शन पेज २८१-२८२ ट्रिबेलियन, हिन्दू फैमिलीला पेज १४६.
यहांपर यह प्रश्न होसकता है कि जब कोई दत्तक अदालतसे नाजायज़ हो गया हो और वह दूसरी सब बातोंसे दुबारा दत्तक लेनेके योग्य भी हो तो वह पुत्र पुनः दत्तक लिया जासकता है या नहीं ? इसमें मतभेद है जहां तक मालूम हश्र है ऐसे प्रत्येक मामलेकी कारवाई परसे अदालत यह बात विचार करेगी क्योंकि प्रत्येक ऐसा मामला भिन्न भिन्न क़िस्मका होता है । दफा २३७ शारीरिक या मानसिक अयोग्यतावाले लड़के
जो अपने शारीरिक या मानसिक अयोग्यताके सबबसे धर्मशास्त्रानुसार 'अन्तेष्ठी क्रिया' करनेके अधिकारी नहीं है, दत्तक नहीं लिये जासकते, ऐसे पुरुषोंको उत्तराधिकारमें जायदाद नहीं मिलती इसलिये ऐसे लड़के यदि गोद लिये गये हों नाजायज़ हैं। देखो; मेन हिन्दूला सातवां एड़ीशन पैरा १३६ और देखो इस किताबकी दफा १७६.
( ४ ) दत्तक सम्बन्धी आवश्यक धर्मकृत्य क्या हैं ?
दफा २३८ दत्तक में आवश्यक कृत्य
जिस विधिसे लिया हुआ दत्तक प्राचीनकालमें जायज माना जाताथा उससे श्राजकलके क़ानूनमै बहुत भेद पड़ गया है । प्राचीनकालमें यह सिद्धांत माना जाता था कि जबतक शास्त्रोक्त रीतिद्वारा दत्तक न लिया जाय तब तक वह दत्तक पुत्र नहीं हो सकता था उस समय द्विजोंमें मंत्रोंकी प्रधानता और कर्म काण्डकी श्रेष्ठता मानी जाती थी अगर विधि के अनुसार गोद न लिया जाय तो वह गोद नहीं कहलाता था । क़ानून के अनुसार वह रीति इतनी ज़रूरी नहीं रही अब केवल पुत्रको गोद देना और लेना जायज़ होनेके लिये काफ़ी है ।