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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
अगर दत्तक हवन करना आवश्यक होवे तो वह दत्तक लेनेके बाद और सूतक या अशुद्धता समाप्त होनेपर किया जासकता है देखो: 5 M.L.J. 66. 18 Mad. 397; 27 Mad. 538; 13 Mad. 214-222 में मदरास हाईकोर्टने कहा कि इस मुकदमेमें एक वैश्य विधवाने उस वक्त गोद लिया जब कि उसके पतिकी लाश घरमें पड़ी थी,और मृतक सूतक था, इसलिये दत्तक नाजायज़ है यही सिद्धांत 9 Mad. I. A 506 में माना गया ।
शूद्रोंमें अशुद्धताके भीतर गोद लिया जासकता है क्योंकि उनमें किसी रसमकी पाबन्दी नहीं मानी गई 5 Mad. 358. बम्बई प्रांतमें माना गया है कि बिना शिर मुंडी विधवा दत्तक ले सकती है 11 Bom. 381; 22 Bom. 590; और बङ्गाल प्रांतमें माना गया है कि विठलाई हुई विधवा दत्तक नहीं ले सकती क्योंकि उसे किसी धार्मिक कृत्यकरनेका अधिकार हिन्दू धर्मशास्त्र कारोंने कहाही नहीं 22 Cal. 347, 5 B. L. R. 362. दफा २४४ दत्तक हवनके बारेमें फैसलोपर विचार - एक दुसरे सिद्धांतके विपरीति अनेक फैसले होगये हैं जिनमेंसे किसीमें दत्तक हवन आवश्यक बताया गया और किसी में नहीं। दत्तक हवनका विवाद 'द्विजन्मा कौमोंके सम्बन्ध है । शूद्रोंके संबंधसब फैसले प्रायः एकही उद्देश के साथ मिलते हैं कि उनमें दत्तक हवन गैरज़रूरी है सिर्फ लड़केका देना और लेनाही दत्तककी रसमको पूराकर देता है। हम आगे कुछ ऐसे फैसले देते हैं जिनमें बहुत कुछ साफ किया गया है कि द्विजोंके लिये गोदके समय दत्तक हवन परमावश्यक कृत्य वैसा ही है जैसा कि लड़केके देने और लेनेकी कृत्य देखो, रंगनाया कामा बनाम अलवर सेटी 13 Mad.214-219; इस मुक़द्दमेमें जजोंने जुड़ीशल कमेटीके इस फैसलेपर भरोसा किया था कि जो महाशय शशिनाथ बनाम श्रीमती कृष्णा 7 I.A. 250-256 में फैसला हुआथा इसमें अदालतकी राय थी कि अभीतक जो कुछ तय हुआ है वह इतनाही है कि शूद्रोंमें दत्तक लेनेकी रसम सिर्फ लड़केका देना और लेना काफी है उनके लिये दत्तक हवन की कोई ज़रूरत नहीं है और न कोई दूसरी रसमकी, किन्तु द्विजन्मा क़ौमोंके लिये बिना दत्तक हवनके दत्तक नहीं हो सकता क्योंकि द्विजोंके लिये कुछ मज़हबी रसमें निहायत ज़रूरी हैं जैसे 'दत्तक हवन' यही सिद्धांत बङ्गाल के पंडितों ने भी दो मुक़द्दमों में कायम किया था, तीनों ऊंचे दर्जेकी क़ौमोंमें दत्तक हवनकी रसम आवश्यक है देखो, अलङ्कमंजरी बनाम फकीरचन्द b S. D. 356-418; 6 S. D. 219-270. यह सिद्धांत अन्य मुक़द्दमोंमें भी माना गया,जस्टिस मित्रनेभी यही माना कि द्विजोंकेलिये दत्तकहवन परमावश्यक है मगर शूद्रोंके लिये नहीं देखो लक्ष्मण बनाम मोहन 16 Suth 179 ठाकुर उमराव बनाम ठकुरानी N. W. P. H. C. 1868 P. 103; ठीक इसी सिद्धांत को बम्बई हाईकोर्टने मानकर कुछ मुकदमोंका फैलला किया है अब अधिकता