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दफा २४१)
दत्तक परिग्रह विधान
पुत्र को आभूषणों से सुसजित करने के पश्चात् गोद लेने वाला स्वयं पवित्र होकर यज्ञवेदीके पश्चिम शुभआसनपर पूर्वकी तरफ मुख करके बैठे और अपने दाहिने तरफ अपनी पत्नीको सुन्दर आसन पर बिठाये । पत्नीकी गोदमें उस दत्तक पुत्रको दे देवे । पीछे आचमन प्राणायाम करके 'दत्तक-हवन करने का संकल्प करे । यज्ञवेदीके दक्षिण तरफ 'ब्रह्मा' बनानेके लिये किसी योग्य ब्राह्मणको अच्छे प्रासनपर बिठा एवं आचार्य को बिठाकर दोनों का विधिवत् पूजन करके नीचे लिखे वाक्य द्वारा 'ब्रह्मा' को वरण करे।
(ब्रह्माके वरण करनेका वचन) कृत्य-देशकालादिसंकीर्त्य"ॐ अद्यकर्तव्यदत्तक पुत्रविधानाङ्गहोमकर्मणि कृताऽकृतावेक्षणरूपब्रह्मकर्मकर्तुममुक"गोत्रं अमुक शर्माणं ब्राह्मणमेभिःपुष्पचन्दनताम्बूलद्रव्यादिभिब्रह्मत्वेनत्वामहंबृणे ।
(वरण को लेकर ब्रह्मा यह कहे) ॐ बृतोस्मि । (गोद लेने वाला यजमान कहे ) ॐ यथा विहित कर्म कुरु ।
(ब्रह्मा यह वचन बोले ) करवाणीति ( नीचे लिखी कृत्य प्राचार्य, ब्रह्मा, और गोद लेने वाला यथा योग्य करे )
(कुश कण्डिका) तद्यथा-प्रणीतापात्रंपुरतःकृत्वाजलेनापूर्य कुशत्रयेणाच्छाद्य ब्रह्मणोमुखमवलोक्य अग्नेरुत्तरतःकुशोपरिनिदध्यात्। ततः परिस्तरणम् । वहिषश्चतुर्थभागमादाय । चतुर्भिर्दर्भदलै रुत्तराप्रैराग्नेयादशिानान्तम् १ प्रागौर्नैऋत्यादाग्नेयान्तम् २ उदगप्रैनैऋत्यादायव्यान्तम् ३प्रागवायव्यादीशानान्तम्च परिस्तरेत् ४ एवंपरिस्तरणंकृत्वा अग्नेरुत्तरतः पश्चिमदिशि पवित्रछेदनार्थकुशत्रयंपवित्रकरणार्थं पवित्रेसाने अन्तर्गर्भेटेकुशपत्रे मोक्षणीपात्रम् १ आज्यस्थाली १ चरुस्थाली १ संमार्जनकुशाःपञ्च ५ उपयमनकुशाः सप्त ७ समिधस्तित्रः