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दफा २४४-२४६] दसक सम्बन्धी आवश्यक धर्म कृत्य क्या हैं ?
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से यह माना जाता है कि द्विजोंमें दत्तक हवन ज़रूरी रसम है शूद्रोंमें नहीं मगर जहांपर सगे भाईका लड़का गोद लिया गया हो और दत्तक हवनकी रसम न की गई हो तो वह महज़ इस वजहसे नाजायज़ नहीं होगा कि उस लड़केके गोद लेनेके समय दत्तक हवन नहीं किया गया था। इससे यह मतलब नहीं समझना चाहिये कि सगे भाईके लड़केके गोद लेनेकी रसममें दत्तक हवन नहीं होना चाहिये बक्लि यह मतलब है कि अगर किसी भूलके सबबसे दत्तक हवन रह गया हो तो दत्तक पुत्र नाजायज़ नहीं हो जायगा। यदि जानबूझकर द्विजोंमें दत्तक हवन छोड़ दिया गया हो तो उसका फल दूसरा होगा देखो (दफा २४५ ); बम्बई हाईकोर्टके फैसले देखो-हैवतराव बनाम गोबिन्द राव 2 Bom. 72-87, रवजी विनायक राव बनाम लक्ष्मी बाई 11 Bom. 381-393 बल्लूबाई बनाम गोबिन्द 24 Bom. 218. . इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसी किस्मका एक मुक़दमा फैसल हुश्रा है जिसमें फरीक्कैन दक्षिणी ब्राह्मण थे साबित हुआ था कि जब सगे भाईका लड़का गोद लिया गया हो तो दत्तक हवन जरूरी नहीं है बाकी दशाओं में है देखो, एमाराम बुनाम माधवराव 6 All. 276.
पांडेचरीमें साफ तय हो गया है कि द्विजोंमें दत्तक हवनकी रसम और अन्य रसमें जो ज़रूरी हैं, दत्तक जायज़ बनानेके लिये अवश्य होना चाहिये, इस विषयपर जो अनेक प्रकारके फैसले हो चुके हैं उन सबका फरक जहांतक मालूम होता है इस हृद्दतक जासकता है कि द्विजन्मा नौमों में अगर गोद लेने वाले और देनेवालेका समान गोत्र न हो, या इसके विरुद्ध कोई रवाज साबित की जाती हो तो दत्तक हवनकी रसम परमावश्यक है। दफा २४५ जानबूझकर दत्तककी रसम त्यागनेका फल
यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि अगर गोदकी रसम जान बूझकर इसलिये छोड़ दी गई हो कि दत्तक विधि पूरी न हो जाय अथवा किसीके मरनेसे या अन्य किसी दूसरे कारणसे जो चाही गई थी पूरी न की जाय तो ऐसी दशाओंमें दत्तक विधि पूरी नहीं समझी जायगी। जो रसम लड़का देने वाले और केनेवालेके बीच चाही गई थी वह दत्तक विधिने पूरा करनेके लिये आवश्यक है चाहे वह रसम कानूनन ज़रूरी नहो देखो 8 W. Macn 197; ईश्वरचन्द्र बनाम रासबिहारी S. D. 1852, P. 1001 बेनीप्रसाद बनाम मुन्शीसैय्यद 26 Suth. 1923 24 Bom. 226. दफा २४६ वसीयतसे गोद और दानपात्र
जबकोई दत्तक घसीयतनामा (मृत्युपत्र) के द्वारा लिया गया हो तो उस में भी ज़रूरी है कि दत्तक सम्बन्धी समन मज़हबी रसमें अवश्य की जायें