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दफा १०४]
साधारण नियम
२१५.
उत्तराधिकार नहीं मिलता वह सिर्फ रोटी कपड़ा पानेका अधिकारी है यही बात कात्यायन कहते हैं शौनककी राय कात्यायनसे मिलती है देखो
यदि स्यादन्यजातीयो गृहीतोऽपि सुतः कचित् अंशभानतं कुर्याच्छौनकस्य मतं हि तत्। कात्यायनः सजातीयस्य पिण्डदातृत्वांश हरत्वेविहिते न तु विजातीयस्य पुत्रत्वं, निषिद्धम् ।
अगर कोई आदमी दूसरी जातिका पुत्र गोदले ले तो वह जायदाद नहीं पाता इसका कारण याज्ञवल्क्य बताते हैं कि सजातीय पुत्र पिण्डदान का अधिकारी होनेसे जायदाद पाने के योग्य है मगर विजातीय लड़केके गोद लेने की मनाही तो नहींकी गयी सिर्फ उसे उत्तराधिकारमें जायदाद नहीं मिलेगी, वृद्ध याज्ञवल्क्य इसे स्पष्ट करते हैं । देखो
सजातीयः सुतो ग्राह्यः पिण्डदाता सरिक्थभाक् तद्भावे विजातीयो वंशमात्रकरः स्मृतः।
प्रासाच्छादन मात्रन्तु स लभेत तहक्थिन इति ' अपनी जातिके पुत्रको गोद लेना चाहिये वही पिण्ड देनेका अधिकारी है. और उसे जायदाद उत्तराधिकार में मिलेगी । अगर सजातीय में लड़केका अभाव हो तो वंश चलाने के लिये विजातीय पुत्र लेना मगर वह पुत्र सिर्फ रोटी कपड़े का अधिकारी है, उसे जायदाद नहीं मिलेगी। इसलिये मनुने जो 'सदृशं' शब्दका प्रयोग किया है उसका स्पष्ट अर्थ सजातीय हो सकता है क्योंकि सजातीय पुत्र ही जायदादमें भाग पावेगा विजातीय नहीं आगे मनुने दत्तक पुत्रका भाग भी कायम किया है इन सब कारणों से 'सदृशं' शब्दका अर्थ सजातीय ही होना योग्य है । मनु इससे सहमत हैं कि विजातीय पुत्रको जायदादमें भाग नहीं मिलता, मेधातिथिका अर्थ दूसरी लाइनका है। सजातीय' का क्या मतलब है ? इसे शौनक स्पष्ट कर देते हैं।
क्षत्रियाणां सजातौ च गुरुगोत्रसमेऽपिवा वैश्यानां वैश्यजातेषु शूद्राणां शूद्रजातिषु सर्वेषामेव वर्णानां जातिष्वेव न चान्यथा ।
क्षत्रियोंको क्षत्री जातिमें, वैश्योंको वैश्य जातिमें, और शूद्रों को शूद्र जातिमें गोद लेना चाहिये दूसरी जातिमें नहीं । यहांपर यह शङ्का नहीं करना