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दफा १३६-१४० ]
पतिकी आज्ञासे विधवाका दत्तक लेना
दफा १४० विधवा और दत्तक पुत्रका इकरारनामा
जब पतिने विधवाको सामान्य गोद लेनेका अधिकार दिया और उसमें खास तौर से यह न बताया हो कि विधवा और दत्तकपुत्र जायदादका लाभ किस तरहपर उठावेंगे, ऐसी दशा में अगर विधवा और दत्तकपुत्रके कुदरती वली बाप या मांके दरमियान कोई इक़रारनामा इस बातका लिखाजाय कि 'दत्तकपुत्रका 'अधिकार विधवा के जीवन भर नहीं होगा, जायदादपर विधवा क्राबिज़ रहे और उसके मरनेपर दत्तकपुत्र को जायदाद मिले, यह इक़रारनामा उस दत्तकपुत्रके लिये माननीय होगा और जायज़ होगा ।
एक हिन्दू विधवाने अपने पतिके दिये हुये अधिकारके अनुसार पतिके मरनेके बाद नाबालिग लड़केको गोद लिया । विधवाने दत्तक लेनेके दिन एक दस्तावेज़ रजिस्ट्री कराया जिसमें दत्तक लेने की बातके सिवाय इस बातकी व्यवस्था लिखी गई कि दत्तक पिताकी जायदादका लाभ किस रीति से विधवा और दत्तकपुत्र श्रापसमें उठावें । उसमें एक शर्त यह थी कि अगर गोद लेनेवाली माता और दत्तक पुत्रके बीचमें परस्पर मतभेद हो तो माता अपनी उमर भर पति की जायदादकी मालिक रहेगीः उसके मरनेपर दत्तकपुत्र पावेगा दत्तक लेने का अधिकार विधवाको पतिने ज़बानी दिया था। सिर्फ़ यह कहा था कि "एक लड़का दत्तक लेना” वह लड़का और विधवा जायदादका किस तरहपर लाभ उठावें इस बातका पतिने कुछ भी ज़िकर न किया था । विधवाने दत्तक लेने के समय जो इक़रारनामा किया था उसका मतलब यह था कि दत्तक लेनेके बाद भी विधवा पतिकी जायदादका उमर भर लाभ उठावेगी । 'लाभ' से मतलब मुनाफा या अन्य फायदे की बातोंसे है । प्रबन्ध भी लाभ उठानेवाले के पास रहता है ।
इक़रार नामे जो शर्तें लिखी गयी थीं उनको दत्तक पुत्रके असली बापने मजूर किया था दत्तक लिये जाने से पहले । पीछे दत्तक पुत्र और विधवा में मतभेद हो गया । दत्तक पुत्रने अपने असली पिता के द्वारा विधबा पर नालिश की कि उसे दत्तक पिता की सब जायदाद दिला दी जाय। अदालतने फैसला किया कि विधवा और दत्तक पुत्रके बीचमें जो इक़रारनामा रजिस्ट्री हुआ है उसका पाबन्द दत्तक पुत्र है विधवा अपनी उमर भर जायदादपर क़ाबिज़ रहेगी; देखो - विशालाक्षी अम्मल बनाम शिवनारायन 27 Mad. 577.
दत्तक--आया विधवा किसी दत्तक पर कोई पावन्दी कर सकती है, उसकी पाबन्दी अवश्य होगी, मित्रसेन बनाम दाताराम 24 A. L. J. 185; A. I. R. 1926 All. 7.