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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
मृते भर्तर्यपुत्रायाः पतिपक्षः प्रभुः स्त्रियाः
विनियोगार्थ रक्षासु भरणे च सईश्वरः ॥१॥ एवञ्च विधवा न स्वातन्त्र्येण पुत्र परिग्रहं विधातुं प्रभवति किन्तु यदधीना तदनुमत्यैवेति विदाङ्कद्धन्तु व्यवहार विदः ।
३-अदूर वान्धवं वन्धु सन्निकृष्टमेव गृह्णीयादिति भगवता वशिष्ठेनाऽदूर वान्धवमितिपदमुपादाय सन्निकृष्ट स गोत्र स पिण्ड सुतस्यैव दत्तकत्वेनादानमनुशिष्टम् सन्निकृष्ट स गोत्र स पिण्डेषु च भात पुत्र एव प्रथमं परिग्रहीतव्य इति भगवान् वृहस्पतिः प्रोवाव यथाः
यद्येकजातावहवो भ्रातरस्तु सहोदराः
एकस्यापि सुतेजाते सर्वेते पुत्रिणः स्मृताः॥ तथा सति, भर्तुः सोदर भ्रातृसुते विद्यमाने विधवानान्यं बालक प्रहीतुं समर्थाऽस्तीति विवोध्यमिति ।
स्वामी रामनिवास शर्मा, द्वितीयाषाढ़ १० भौमे सम्बत् १६६६ ता० २३-७-१२ ई० दफा ११९ नाबालिग पतिके लिये विधवा गोद ले सकती है
विधवा का लिया हुआ दत्तक यदि अन्य सब बातोंसे जायज़ है तो वह इस बातसे नाजायज़ नहीं होगा कि विधवाने जिसके लिये गोद लिया वह पति, मरने के समय नाबालिग था यानी नाबालिग पति के लिये दत्तक लिया जासकता है, पटैल बृन्दावन जैकिशुन बनाम मनीलाल 15 Bom. 565
पुत्रबधू द्वारा अपने पति के लिये दत्तक--जब कोई हिन्दू पिण्डदान करता है, तो वह उसके द्वारा अपने, पिता, पितामह और प्रपितामह की आत्मा को समान रीति पर उद्धार करता है और किसी अन्य सन्तान या घंशज द्वारा दिया हुआ कोई दान इतना महत्वपूर्ण नहीं होता । जब कोई पुत्र गोद लिया जाता है, तो गोद लिये हुए पुत्र का पिण्डदान अपने गोद लेने वाले पिता, गोद लेने वाले पितामह और प्रपितामह के लिये उसी प्रकार हित कर और प्रभावजनक होता है, जिस प्रकार कि स्वाभाविक पुत्र द्वारा दिया हुआ पिण्ड दान । और इस कारण से वह पारिवारिक जायदादमें उसी प्रकार हिस्सा पाने का अधिकारी होता है जिस प्रकार कि स्वाभाविक पुत्र होता है भतएव जब दत्तक पुत्र द्वारा जायदाद के अन्तिम अधिकारी की आत्मा को, इस प्रकार दिये हुए पिण्डदान से उन्नति पहुँचाई जाती है, जोकि किसी अन्य प्रकारअसम्भव है तो इस पवित्र कर्तव्य के उस के द्वारा पूर्ण किये