________________
विवाह
[ दूसरा प्रकरण
नर्म वृक्ष नदी नाम्नी नान्त्य पर्वत नामिकाम न पक्ष्यहि प्रेष्यन म्नी नच भीषणनामिकाम् । ३-६ अव्यङ्गाङ्गी सौम्बनाम्नी हंसवारण गामिनीम् तनुलोम केश दशनां मृदङ्गी मुदहेत् स्त्रियम् । ३-१० यस्यास्तु न भवेद्माता नविज्ञायेत वा पिता नोपयच्छेत तां प्राज्ञः पुत्रिका धर्म शङ्कया । ३-११
मनु कहते हैं कि, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को चाहिये कि गुरू की आशा ब्रह्मचर्य व्रत को ठीक रीतिसे पालन करते हुए समावर्तन स्नान पहले कर, पीछे शुभ लक्षणोंसे युक्त अपने वर्ण की स्त्री से विवाह करे । नीचे लिखे दश प्रकार के कुल यदि गौ, बकरी, भेड़, आदि धन और धान्यले युक्त भी हों तो उनका कन्यासे विवाह नहीं करना चाहिये । और जोकुल अर्थात खानदान (१) क्रिया हीन हो, (२) केवल कन्याही पैदा होती हो, (३) वेद विद्या न जानो हो, (४) सबके शरीर में रोम बड़े होते हैं, (५) बवासीर रोग होता हो, (६) क्षयी रोग से युक्त हो, (७) मंदाग्नि रोग होता हो, (८) मृगी रोगसे पीड़ित हो, (६) श्वेत कुष्ठ रोग होता हो या (१०) गलि त दुष्ठ होता हो, ऐसे स्नानदान की लड़की के साथ विवाह करना वर्जित है। भूरे बालों वाली, अधिक अङ्ग वाली, रोगिणी, गेमरहित शरीर वाली, बहुत रोम वाली बहुत बकने वाली, पीली आंख वाली, तथा नक्षत्र, वृक्ष, नदी, म्लेच्छ, पहाड़, पक्षी, सर्प, दासी आदि सेवा सूचक अथवा भयानक नाम वाली कन्या से विवाह नहीं करना चाहिये । शुद्ध अङ्गोंयुक्त और प्रिय नामवाली हंस और हाथी के समान चलने वाली, बहुत बारीक रोमवाली, मुलायम लम्बे केश वाली, छोटे दांत और कोमल शुभ अङ्ग वाली कन्या से विवाह करना चाहिये। और जिस कन्याका भाई न होने तथा जिस कन्याके पिताको न जानता हो ऐसी “पुत्रिका' नामक कन्या के साथ धर्मकी शङ्का से विवाह नहीं करना चाहिये 'पुत्रिका' किसे कहते हैं देखो मानघगृह्य सूत्र १ पुरुष, ७ खण्ड ८ अङ्क गौतम अ० २६ अङ्क ३; शातातपस्मृति श्लो० ३६; याज्ञवल्क्य स्मृत्ति १-५२, ५४ में कहा गया है कि द्विजको चाहिये कि ब्रह्मचर्य व्रत पूरा हो जानेपर शुभ लक्षणोंसे युक्त, विन व्याही हुई, असपिण्डा, अपनेसे कम उमरकी, रोग रहिता, भाई वाली, अपने गोत्र और प्रवर से बाहर वाली, मातासे ५ पीढ़ी और पिता से ७ पीढ़ी के अन्तर वाली, अर :दश पीढ़ियों से विख्यात, श्रोत्रियोंके कुलकी कन्या से विवाहकरे । कुष्ठ आदि संचारी रोग तथा दोषयुक्त अच्छे बड़े कुलकी