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विवाह
[ दूसरा प्रकरण
और चूंकि उन समस्त हिन्दुओंको, इस कानूनी अयोग्यता से जिसकी वे शिकायत करते हैं छुटकारा देना न्याय है और चूंकि हिन्दू विधवाओं की शादी की तमाम कानूनी अयोग्यताओं के हटा देने से, सदाचार और सार्वजनिक हित की वृद्धि में सहायता प्राप्त होगी: अतएव इसकी निम्न प्रकार व्यवस्था की जाती है:दफा १ हिन्दू विधवाओं की शादी का कानूनी किया जाना
हिन्दुओं के मध्य कोई शादी नाजायज़ न होगी और सी शादी से उत्त्पन्न सन्तान गैर कानूनी न होगी, इस कारण से कि उस औरत की शादी या सगाई किसी दूसरे व्यक्ति के साथ पहिले हो गई थी जोकि इस प्रकार की शादी के समय मर गया है, चाहे कोई रिवाज या किसी हिन्दू लॉ की व्याख्या इसके विरुद्ध भी हो। दफा २ विधवा के वे अधिकार जो उसे मृत पतिकी जायदाद
पर प्राप्त होते हैं, पुनर्विवाह के वाद समाप्त हो जाते हैं
वे समस्त अधिकार और लाभ, जो किसी विधवा को अपने मृत पति की जायदाद पर, परवरिश के रूप में या अपने पति के उत्तराधिकार स्वरूप या पतिके वंशजके वारिस की भांति, या किसी वसीयतनामे या शर्तनामे की हैसियत से जो उसके हक में किया गया हो, और जिसमें पुनर्विवाह की स्पष्ट आज्ञा न हो तथा जिसकी वह परिमिति अधिकारिणी हो और उसके इन्तकाल करने का उसे अधिकार न हो, उसके पुनर्विवाह होने पर इस प्रकार समाप्त हो जायगे, गोयाकि वह मर गई हो, और उसके पति के दूसरे वारिस या वे वारिस जो मृत्यु के पश्चात् अधिकारी होते, उन अधिकारों
और लाभों को प्राप्त करेंगे। दफा ३ विधवाके पुनर्विवाह हो जाने पर मृत पति की सन्तान
के लिये वली नियत किया जाना किसी हिन्दू विधवा के पुनर्विवाह हो जाने पर, यदि विधवा या कोई अन्य व्यक्ति मृत पति के वसीयतनामे द्वारा स्पष्ट रीति पर उसकी सन्तानका पली नहीं नियत किया गया, तो मृत पतिका पिता या पितामह या माता या आजी (पिता की माता) या मृत पति का कोई पुरुष सम्बन्धी, सब से बड़ी अदालत में जिसके दीवानी के न्यायाधिकार के अन्तर्गत वह स्थान हो, जहां मृत पति अपनी मृत्यु के समय पर रहता था, उसकी सन्तान के लिये वली नियत करने के निमित्त अर्जी दे सकता है। और अर्जी के देने पर उक्त अदा.