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पुत्र और पुत्रत्व
[ तीसरा प्रकरण
'क्षेत्रज पैदा हो तो उसका क्या असर होगा ? यह बात महर्षि वर्तिष्ठने साफकर दी है कि - औरस पुत्रके न होने पर नियोग द्वारा जो दूसरेकी स्त्रीके गर्भसे पुत्र पैदा होगा वही क्षेत्रज होगा । अर्थात् यदि औरस पुत्र मौजूद हो तो फिर क्षेत्रज नहीं पैदा किया जासकता । क्योंकि औरस पुत्रके होनेपर पिताका अधिकार धर्म शास्त्रकी दृष्टिसे चला जाता है । कारण कि पुत्रोत्पादन, धर्मकृत्य के पूरा होने और वंशके क़ायम रखनेके लिये ज़रूरी होता है । इस विषय में सभी स्मृतिकारोंका मत एक है कि औरस पुत्र न होनेपर क्षेत्रज का विधान है और वह सगोत्र तथा नज़दीकी सपिण्डकी मौजूदगी में दूरके पुरुष द्वारा न उत्पन्न किया जाय; देखो दफा २८२, २८३
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दफा ८८ नियोगकी चाल मनुके समय में कमज़ोर हो चली थी
मेन हिन्दूलॉ की दफा ७०/७१/७२/७३ में विस्तृत वर्णन पुत्रके सम्बन्धमें किया गया है सारांश यह है कि, जैसे २ ज़माना बदलता गया, वैसाही परिवर्तन होता गया । यही कारण मालूम होता है कि स्मृतियोंमें कुछ कुछ फ़रक़ देख पड़ता है मनुके समय में इसकी प्रथा कमज़ोर हो गई थी । मनुं कहते "हैं, कि स्त्रीके अलङ्कारयुक्त होनेसे कांति बढ़ती है और अगर पति के सिवाय दूसरे पुरुष का उसमें संसर्ग न हो तो वह कुल शोभित होता है, और दूसरे पुरुषका संसर्ग होनेसे वह कुल दूषित होजाता है । स्त्री और पतिको सदा ऐसा प्रयत्न करना चाहिये जिससे, धर्म, अर्थ और काममें, आपसमें वाधा न पड़े; ऐसा होनेपर कहीं व्यभिचारयुक्त न होजाय। इस बातका प्रमाण मिलता है कि पहले से बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था जब साधारतः श्रविभक्त परिवारकी तकसीम होगई, तब नियोग भी नापसन्द होगया । मृत पतिके सहोदर
( ४ ) स्वयमुत्पादितः स्वक्षेत्रे संस्कृतायां प्रथमः । १३ । - तदलाभेनियुक्ताय क्षेत्रजो द्वितीयः । वसिष्ठ १७०१४ (५) स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद्रोचते कुलम् । तस्यां त्वचमानायां सर्वमेव न रोचते । मनु ३ ० ६२ तथामित्यं यतेतायां स्त्रीपुंसौ तु कृतक्रियौ । यथा नाभिचरतांती वियुक्तावितरेतरम् । मनु ६ ० १०२