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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
सूरत उस समयभी होगी जब कोई पहले जायज़ दत्तक लिया गयाहो, उसकी भी मंजूरी और आज्ञासे दत्तक हो सकता है। देखो-रंगम्मा बनाम श्राचम्मा 4 M. I. A. 1 at P. 97; 7W. R. P. C. 57 at P. 59, 62.
इस किस्मके दत्तकके रवाजको बंगाल में जायज़ स्वीकार किया गया है। देखो-सुलकना बनाम रामदुलाल, फैसला सदर अदालत बंगाल 1 Vol. P. 324: 434 गौरीप्रसाद बनाम जमाला फैसला सदर अदालत बङ्गाल 2 Vol. P. 136-174
औरसपुत्र या दत्तकपुत्र की मंजूरी और आज्ञा से दत्तक लेना बहुत करके अयोग्य है और जब वे धार्मिक कृत्त्यके करनेकी योग्यता रखते हों तो सभ्य समाजके नियमके एकदम विरुद्ध है। ऐसे दत्तकका मानना या न मानना अदालतपर निर्भर है। परन्तु अब यह प्रथा बन्द सी हो गई है। दफा ९७ एक वक्त में केवल एकही लड़का गोद लिया जायगा
यह तय हो गया है कि कोई एक ही वक्तमें दो दत्तकपुत्र गोद नहीं ले सकता, चाहे उसे अधिकार भी हो कि वह जितने और जितनी दफा चाहे गोद ले, परन्तु यह अधिकार माना नहीं जायगा । देखो रंगाम्मा बनाम आचम्मा 4 Mad. I. A. I. S. C. 7; Suth ( P.C), 57; महेशनरायन बनाम तारकनाथ 20 I. A. 30; S. C. 20 Cal. 457; अक्षयचन्द्र बनाम कलायारहाजी 12 I. A. 198; 12 Cal. 406; दुर्गासुन्दरी बनाम सुरेन्द्र केशव 12 Cal. 686; 19 I. A. 108, S. C. 19 Cal. 513. अर्थात् एक वक्त में एक ही गोद होगा। दफा ९८ नाजायज़ दत्तक कभी जायज़ नहीं हो सकता
जहां पर गोद असली लड़के या दत्तक पुत्रकी मौजूदगी में नाजायज़ बताया गया है, वहां पर पहलेके दत्तक पुत्र या असली लड़केके बादमें मर जाने पर वह गोद जायज़ नहीं हो जायगा । दत्तक लेनेके समय जो दत्तक नाजायज़ हो वह पीछे होने वाली उन घटनाओंसे जायज़ नहीं हो सकता, जो यदि दत्तक लेनेके समय होती तो वह दत्तक जायज़ होजाता । जैसे किसीने एक लड़केकी मौजूदगीमें नाजायज़ गोद लिया उसके बाद पहिले वाला लड़का मरगया तो अब भी वह दत्तक जायज़ नहीं होगा । देखो--बसू बनाम बसू Mad. Dec. 1856. P.20.
जायज़ दत्तक कभी नाजायज़ नहीं हो सकता-दत्तक लेने के सम्बन्ध में, आत्मिक उन्नति के लिये दत्तक लिये जानेके औचित्य या संसारिक या व्यवहारिक अभिप्राय के लिये यानी किसी एक तात्पर्य के लिये दत्तक लिये जाने के सम्बन्ध में दत्तकका जायज़ होना या