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दफा १०१-१०३]
दत्तक लेने के साधारण नियम
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दफा १०३ अंगभंग पुरुष दत्तक ले सकता है
उत्तराधिकारसेच्युत पुरुष दत्तक ले सकता है परन्तु उस दत्तकका अधिकार अपने दत्तकपितासे अधिक न होगा । वह दत्तकपुत्र केवल रोटी, कपड़ा पाने का अधिकारी होगा । जहांपर कोई आदमी अपनी शारीरिक अयोग्यताके कारण वारिस होने की योग्यता न रखता हो, जैसे, अंधा; लूला, लंगड़ा, पागल, गूंगा इत्यादि, और वह किसी लड़केको गोदले, तोले सकता है मगर उस दत्तकपुत्रका हक़ सिर्फ रोटी कपड़ा पानेका रहेगा। फ़ैसला अदालत मदरास 1857 P. 210 मि० सदर लैण्डकी यह राय है कि दत्तक तो जायज़ होगा, मगर उसे दत्तक पिताकी खुद कमाई जायदाद या जो अलहदा हो मिलेगी।
· मगर मि० मेकनाटनने इसमें एक फरक निकालकर दो मुक़द्दमोंका ज़िकर किया है, जिनमें कहा गया है कि बंगाल के पंडितों ने यह राय दी है कि व्यक्तिगत अयोग्यतावाले पुरुषके गोद लेने का आधार इस बात पर निर्भर था, कि वह पहिले प्रायश्चित्त करके अपनेको उस योग्य बनाले, पीछे गोदले तो वह गोद जायज़ समझा जायगा; यानी प्रायश्चित्तके बिना गोद नहीं लेसकता । देखो-मेकनाटन हिन्दुलॉ जिल्द २ पेज २०१: मिताक्षरा २-१०, ११ महन्त भगवानदास बनाम महन्त रघुनन्दन 22. I. A. 94; S. C. 22 Cal.843.
__ यह राय इस युक्तिपर निर्भर थी, कि जबतक प्रायश्चित्त उसने नहीं किया था तबतक वह इस योग्य नहीं था कि मज़हबी धार्मिक कृत्योंको पूरा करसके । बिल्कुल इसी उद्देश्यके अनुसार बङ्गाल हाईकोर्टने फैसला किया कि जब कोई विधवा अपने धर्म से च्युत रही हो और वह गोद ले, तो वह नाजायज़ होगा । क्योंकि जिस हैसियतमें उसने गोद लिया है वह हैसियत किसी धर्मकृत्यके पूरा करनेके योग्य न थी । देखो-श्यामलाल बनाम सौदामिनी 5 B. L. R. 362.
__यह बहस बम्बई हाईकोर्टमें भी एक मुक़द्दमेमें की गई कि विधवाका गोद लेना नाजायज़ है, जिसने अपना शिर न मुड़ाया हो। यह साबित किया गया था कि उसने वह ज़रूरी प्रायश्चित्त करदिये थे जो गोद लेने के समय होना चाहिये परन्तु अदालतने इस मामलेमें बहस करनेकी आशा नहीं दी। देखो-रावजी विनायक बनाम लक्ष्मीबाई 11 Bom. 381-392; लक्ष्मीबाई बनाम रामचन्द्र 22 Bom. 590; W. R. 998; यह दोनों केस एक दूसरेके विरुद्ध हैं -पहले केसमें माना गया कि शिर मुण्डन करानेके बाद दत्तक लेना जायज़ होगा। दूसरेमें यह भी नहीं माना गया । कहा गया कि प्रायश्चित्त, धार्मिक कृत्य नहीं है-दफा १०६ भी देखो।