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पुत्र और पुत्रत्व
[ तीसरा प्रकरण
दरजा पहिले वालोंके मुक़ाबिलेमें कम होता जाता है। जैसे दोके मुक़ाबिलेमें तीन का दरजा कम है, और तीनकी अपेक्षा चारका कम है इत्यादि - दूसरी तरह से पुत्रोंका दरजा इस तरहपर देखिये कि, समुदाय शक्तिले कौन पुत्र किस पुत्र से श्रेष्ठ माना गया, जैसे औरस पुत्र को सभीने सबसे प्रधान माना । क्षेत्रजको देखिये १ आचार्यांने दूसरा दरजा माना, तीन आचार्यों ने तीसरा दरजा और एकने आठवां दरजा क़ायम किया। तो इससे नतीजा यह निकलता है कि आचार्य जिस बातको कहते हैं, वह बात तीन और एक आचार्य से श्रेष्ठ है । इस लिये क्षेत्रजपुत्रका दूसरा दरजा मानना चाहिये, क्योंकि कसरत राय दूसरे दरजे की है। दत्तक पुत्रको देखिये -चार आचार्योंने उसका तीसरा दरजा, चारने नवां दरजा, दो ने सातवां दरजा, दो ने आठवां दरजा, एक ने चौथा दरजा माना है । नवें और तीसरे दरजे में बराबर के आचार्य हैं। यहां पर मनुने जिस पक्ष को स्वीकार किया हो, वह समानता होने पर भी श्रेष्ठ मानना पड़ेगा । मनु, गौतम, बृहस्पति, कालिका पुराण, प्रसिद्ध एवं अधिक माननीय आचार्य हैं । ६ दरजेके मानने बालोंके बचनों को उतना मान नहीं दिया गया है । इसलिये दत्तक पुत्र को तीसरा दरजा देना ही योग्य होगा । अब दत्तक और क्षेत्रजके विषय में मिलान करें तो क्षेत्रज, दत्तकसे श्रेष्ठ है क्योंकि उसका दरजा समुदाय शक्तिसे दूसरा और दत्तकका तीसरा है । इसी तरहपर सब पुत्रोंका विचार कर लेना चाहिये ।
ऊपरके पुत्रों के बारेमें विज्ञानेश्वर का मत याज्ञवल्क्य और मनु से मिलता है और जीमूतवाहनका मत देवल के मतसे । स्मृति चन्द्रिकाका मत मनु के मतसे मिलता है । मनुंने पुत्रिकापुत्रको नहीं माना । मगर उसे औरस के बराबर भाग में अधिकारी बताया है । मिताक्षराने औरस से उसका नीचा दरजा माना है । देखो -- मनुस्मृति ६-१३४.
पुत्रिकायां कृतायां तु यदि पुत्रोऽनुजायते समस्तत्र विभागास्याज्ज्येष्ठतानास्ति हि स्त्रिया ।
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