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एक्ट सन१८५६ई० 1 हिन्दू विधवाओंके पुनर्विवाहका कानून
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लत के लिये यह न्यायानुकूल होगा, कि यदि वह उचित समझे तो वली मुक़र्रर करे, जिसको कि नियुक्त हो जाने पर यह अधिकार होगा कि उक्त बच्चों या उनमें से किसी की, उनकी नाबालिगी के वक्त; उनकी माता के स्थान पर हिफ़ाज़त और रक्षा करे। इस प्रकार की नियुक्त करने में अदालत उन कानूनों और नियमों के अनुसार कार्यवाही करेगी, जो उन बच्चों के सम्बन्ध में हैं जिनके माता या पिता नहीं होते।
नियम यह है कि उस सूरत में जब कि उक्त बच्चों की खास कोई ऐसी जायदाद न होगी जो कि उनकी नाबालिग्री की अवस्था में उनकी जीविका और उचित शिक्षा के लिये काफ़ी हो, इस प्रकार की नियुक्ति बिना माता की रजामन्दी न की जायगी, जब तक कि नियुक्त किया जाने वाला वली, बच्चों की नाबालिग्री के मध्य, उनकी जीविका और उचित शिक्षा के प्रबन्ध करने की जमानत न दे। दफा ४ इस कानुनमें कोई बात ऐसी नहीं है जो किसी
निस्सन्तान विधवा को उत्तराधिकार के योग्य बनाती हो
इस कानून में व्यक्त, किसी आदेश से यह न समझा जायगा कि वह किसी विधवा को, जो किसी व्यक्ति के मरने पर जो कोई जायदाद छोड़ कर मरता है, निस्सन्तान विधवा है, उस जायदाद को समस्त या उस के किसी हिस्से को उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त करने के योग्य बनाता है, यदि इस कानून के पास होने के पूर्व वह उस जायदादके उत्तराधिकार से, निस्सन्तान होने के कारण नाबालिग रही हो। दफा ५ दफा २ और ४ में बताये हुए आदेशों के अतिरिक्त
पुनर्विवाह करने वाली विधवाके अधिकारों की रक्षा सिवाय उसके, जो उपरोक्त तीन दफाओं में बताया गया है किसी विधवा की, पुनर्विवाह के कारण, कोई जायदाद या कोई अधिकार जिस की वह अन्य रीति पर अधिकारिणी होती, ज़ब्त न होंगे, और प्रत्येक विधवा को जिसने पुनर्विवाह किया हो, उत्तराधिकार का वही अधिकार होगा, जो उस सूरत पर उसे प्राप्त होता, यदि उसकी वह शादी पहली शादी होती। दफा ६ उन रस्मों का, जिनकी बिना पर शादी जायज मानी
जाती है, विधवा की शादी में भी वही असर होगा
वे मंत्र जो पढ़े जाते हैं, रस्में या रिवाज, जो अदा की जाती हैं, उस हिन्दू स्त्री की शादी को जायज़ बनाने के लिये जिसका पहिले विवाह नहीं