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वैवाहिक सम्बन्ध
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दफा ७६-८०] दफा ७६-८०]
११९ विपद् कालमें पति स्त्री धनको काममें लानेका अधिकारी है । लेकिन शर्त यह है कि ज्योंही पतिकी दशा सुधरे वह स्त्रीधन तुरन्त वापिसकर दे, देखो--
दुर्भिक्षे धर्म कार्येच व्याधी संप्रतिरोधके गृहीतं स्त्रीधनं भर्ता न स्त्रियै दातुमर्हति । या०११-१४७
और देखो दफा ७५६-७६० मदरासमें एक बेटी अपने जीवनपर्यन्त अपने बापकी जायदादके कब्जेका अधिकार रखती थी अर्थात् वह जायदादका इन्तक़ाल नहींकर सकतीथी; परन्तु जब उसने अपनी सौतेली बेटीके विवाहके लिये जायदादका इन्तनाल किया क्योंकि उसका पति दरिद्रताके कारण विवाह नहीं कर सकता था, अदालतने इस इन्तकालको जायज़ मानाः देखो-चुदम्मल नादामनी नायडू 6.Mad. L. T. 158,
पुत्रार्तिहरणेवापि स्त्रीधनं भोक्तु मर्हति (किन्तु) वृथादानेच भोगेच स्त्रियै दद्यात् सवृद्धिकम् । प्राप्तं शिल्पैस्तु यदित्तं प्रीत्या चैव यदन्यतः भर्तुःस्वाम्यं भवेत्तत्र शेषं तु स्त्रीधनं स्मृतम् । कात्यायन
सरांश यह कि-स्त्रीने कलाकौशलले जो धन प्राप्त किया हो, या प्रीति से या दूसरी तरहसे मिला हो, उसमें पतिका अधिकार है; बाकी स्त्रीधनमें नहीं है, ऐसा कहना कात्यायनका है। देखो एफा ७५६ और ७६०. दफा ८० विवाह का रवाज
विवाहके जो रवाज सदाचारके विरुद्ध हों, कानूनके विरुद्ध हों, या सार्बजनिक नीतिके विरुद्ध हों अदालत उन्हें नहीं मानेगी। उदाहरणके लिये देखो-जैसे पतिके जीवन कालमें बिना मंजूरी पतिके विवाह का रवाज आदि नहीं माना जायगा-खेमकुंवर बनाम उमिमाशंकर 10 Bom. H. C. R. 381.
जिन लोगोंमें तलाक और पुनर्विवाहका रवाज है, उनमें पति स्त्रीको या स्त्री अपने पतिको, प्रथम विवाहका खर्च लौटाकर दूसरा विवाह करसकती है। ऐसा रवाज सदाचारके विरुद्ध नहीं माना जायगा; शंकरलिंगं बनाम सुवनचिट्टी 17 Mad. 479; रजस्वला होनेतक स्त्री का अपने पिताके घर रहनेका रवाज है 24 Mad. 255.
___मदरासके मलावार प्रांतके नामबुद्री ब्राह्मणमें 'सर्वस्वाधनं, विवाहका रवाज अबतक जारी है । जब कोई नामबुद्री ब्राह्मण, पुत्रहीन हो तो वह