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विवाह
[दूसरा प्रकरण
जावे जिससे प्रत्येक जाति के पूर्ण सहयोग के साथ बालविवाह को रोकने का प्रस्ताव पास किया जा सके परन्तु मेरी बात नहीं मानी गई।
कुमार गङ्गानन्दसिंह की राय थी कि विवाहोचित अवस्था बजाय १४ वर्ष के घटाकर १२ वर्ष कर दी जावे परन्तु यह बात भी बहुमत से अस्वीकृत की गई । यदि १२ वर्ष भी विवाहोचित आयु हो जावे अर्थात् उससे कम आयु में विवाह किया जाना दण्डनीय समझा जावे तो कट्टर हिन्दुओं में से कच्छ लोग साथ देने के लिये तैयार किये जा सकते हैं। विवाह हिन्दुओं में एक धार्मिक कृत्य माना गया है तथा अगणित वर्षों से एक विशेष धारणा विवाह के सम्बन्ध में हिन्दुओं के हृदयों में रही है इस कारण १२ वर्ष से अधिक तथा १४ वर्ष से कम आयु में विवाह करने पर दण्ड दिया जाना हिन्दुओं में बड़ी गड़बड़ी पैदा करदेगा । इन्हीं कारणों से मैं ऐसे प्रस्ताव का विरोध करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ।
हम लोगों को यह बात भी ध्यान में रखना चाहिये कि इंगलिस्तान देश में भी विवाहोचित आयु १२ वर्ष रक्खी गई है। .
मैं समझता हूँ कि कन्याओं के विवाहकी आयु १२ वर्ष से अधिक बढ़ाने की बात उस वक्त तक के लिये छोड़ देना चाहिये जब तक कि और अधिक विद्या प्रचार न हो लेवे और जब तक सामाजिक तथा शारीरिक उन्नति के विचार औरन बढ़ लेवें । उक्त बातों के प्रभाव सामने मौजूद ही हैं तथा उनका ध्यान अवश्य रखना चाहिये।
मैं इस बात से भी सहमत नहीं हूँ कि किसी भी व्यक्ति को इस कानून के भंग करने पर कारावास का दण्ड दिया जावे ।
मैं समझता हूँ कि यदि सरकार व जनता इस एक्ट के उद्देश्य का प्रचार भले प्रकार करने में सहयोग करेंगे तो लोग एक हज़ार रुपये तक किये जाने वाले जुर्माने के डर से तथा चालान किये जाने के भय से, कभी इस एक्ट के विरुद्ध वालविवाह करने का साहस न करेंगे । इस एक्ट के प्रचलित किये जाने के प्रारम्भिक कुछ वर्षों तक में किसी प्रकार भी कारावास का दण्ड दिया जाना उचित नहीं समझता हूँ। १३ सितम्बर सन १९२८ ई० श्री मोहम्मद यूसुफ - मैं इस विचार को प्रकट करते हुए इस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करता हूँ कि मुसलमानों की एक बहुत बड़ी संख्या जिसमें कि प्रसिद्ध उल्मा भी शामिल हैं इस बिल का प्रयोग मुसलमानों के लिये बिलकुल अनुचित समझते इक्योंकि उससे उनके धर्म में प्राघात पहुँचता है।