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बिल]
वैवाहिक सम्बन्ध
श्री एच. ए. जे. गिडनी
मेरी राय में उस बिल से, जो अब तैयार हुआ है लाभ की बातें खिच गई हैं और यह बिल एक सामाजिक सुधार के प्रस्ताव की भांति है। श्री गंगानन्द सिंह
मैं समझता हूँ कि लड़कियों के लिये विवाहोचित आयु का कम से कम १४ वर्ष कर दिया जाना बहुतेरे हिन्दू नापसन्द करेंगे। क्योंकि १४ वर्ष आयु को वे बहुत अधिक समझेंगे । मैं यह जानता हूँ कि मुसलमान, ईसाई, पारसी तथा बहुतेरे हिन्दू जिनसबके लिये यह लागू होगा, इसका उलटा ही अर्थ लगायेंगे । अर्थात् कानूनन विवाहोचित श्रायुके कम से कम १४ वर्ष कर दिये जाने के फलस्वरूप यह लोग अपने समुदाय में विवाह करने की आय घटा देंगे (अर्थात यदि पहले उन लोगों में बहुत बड़ी आयु में विवाह होता होगा तो अब बह १४ वर्ष के लग भग ही विवाह करने लगेंगे ) बहुतेरे हिन्दू कन्याओं का विवाह यौवन विकाश से पूर्व ही कर दिया जाना उचित समझते हैं। परन्तु मैं इस मत से सहमत नहीं हूं। हिन्दू लोग विवाह संस्कार को धार्मिक अङ्ग मानते हैं । और उन लोगों में विवाह हो जाने से यही अभिप्राय नहीं है कि, विवाहित व्यक्ति आपस में प्रसङ्ग ही करें।
हिन्दू महासभा, जिसमें भिन्न २ समुदायों के हिन्दू सम्मिलित हैं, लड़कियों के लिये विवाहोचित आयु १२ वर्ष निर्धारित करती है । तथा अखिल भारतीय सनातन धर्म महासभाभी जिसमें कट्टर हिन्दू ही सम्मिलित हैं इस आयुका १२ वर्ष ही होना निश्चित करती है। पंडित मदनमोहन मालवीयकी अध्यक्षता में इलाहाबाद में जनवरी सन १९२८ ई० में इस महासभा की जो बैठक हुई थी उसका प्रस्ताब नं० ७ इस प्रकार है:७- (ए) सनातन धर्म महासभाकी रायमें किसी हिन्दू बालकका विवाह
१८ वर्षसे कम आयु में न होना चाहिये। (बी) यह महासभा हिन्दू जाति को उपदेश देती है कि लड़कियोंकी
आयुका द्वादश बर्ष आरम्भ होने से पूर्व उनका विवाह कदापि
कदापि न होना चाहिये। किन्तु अन्तिम प्रस्ताव ( Resolution ) नं. ८ में यह ( महासभा) स्पष्ट रूपसे बताती है कि लड़की के १६ वीं वर्ष में प्रवेश करनेसे पूर्व (अर्थात् जबतक लड़की १६वीं वर्ष में न लग जाय) विवाह के परस्पर प्रसङ्ग आशयकी पूर्ति ( दाम्पत्य सम्बन्ध ) न होना चाहिये।