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बिल
वैवाहिक सम्बन्ध
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एक साथ अपनी दो लड़कियों का विवाह करना चाहेगा या कोई मरणासन्न व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले अपने बच्चे का विवाह किन्हीं खास कारणों से करना चाहेगा। और इसी प्रकार के और भी अवसर आवेगे।
इसलिये मैं समझता हूँ कि ऐसे कठिन अवसरों के लिये कुछ गुन्जायश रक्खी जाना चाहिये । ऐसे उदाहरणों की पूरी सूची-शिडयूल के तौर पर देना बड़ा कठिन कार्य है । इसके पश्चात् यह प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि ऐसे मामलों की सुनवाई किस प्रकार के न्यायाधीश के सामने होना चाहिये कि जिसमें वह इस गहन विषय को समझ सके तथा विवेकपूर्ण न्याय कर सके । मेरी अनुमति में इस प्रकार का अधिकार फौजदारी की अदालतों को न दिया जाना चाहिये क्योंकि बहुधा वह अनेकों प्रकार की संकटमय जीवन समस्याओं से अनभिन्न रहती हैं।
इस कारण मेरी राय है कि इस प्रकार के मामलों पर विचार करने का अधिकार जिले की प्रधान दीवानी अदालत को दिया जाना उचित है या राजधानी में नगर की प्रधान दीवानी अदालत को दिया जावे या प्रान्त की किसी और अदालत को दिया जावे जो इनके समान हों। मैं चाहता हूँ कि एक आम नियम इस प्रकार का बना दिया जाये।
यदि विवाह करने वाले व्यक्ति या उनके माता पिता या संरक्षक विवाह करने से पूर्व, जब कि कन्या की अवस्था १२ वर्ष से कम न हो, एक प्रार्थना पत्र प्रधान दीवानी अदालत के सम्मुख इस आशय का पेश करें, कि उनको इन विशेष कारणों से जिनका उल्लेख प्रार्थना पत्र में है परम आवश्यक प्रतीत होता है। यदि विवाह न किया जा सका तो उससे कन्या को या उसके घर वालों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा । और वह दीवानी अदालत इस प्रार्थना को स्वीकार करले तो ऐसी अवस्था में यह एक्ट लागू न होगा।
मेरी राय है कि दफा में मामला चलाये जाने का समय १ साल से कम होना चाहिये । अधिक से अधिक तीन मास तक (विवाह होने के पश्चात्) मामला चलाया जा सके।
श्री मदनमोहन मालवीय - मैं अपने साथी मेम्बरों के बहुमत से दो विशेष बातों में सहमत नहीं हूँ। इस प्रकार के प्रस्ताव से कि १४ वर्ष से कम आयु वाली कन्याओं का विवाह न होना चाहिये कट्टर हिन्दुओं में बड़ी हलचल मच गई है। मैंने इस घातपर जोर दिया था कि यह वायु बजाय १४ वर्षके घटाकर ११. वर्ष कर दी