________________
विवाह
दफा ६७ विवाहकी रसम कब पूरी मानी जायगी
विवाहका कृत्य समाप्त होतेही पति, पत्नीका संबंध अरंभ हो जाता है और विवाहका कृत्य समाप्त तब समझा लाता है जब वर और कन्या 'सप्तपदी' करलें । सप्तपदी का मतलब सात भांवरोंके बाद जो कृत्य किया जाता है (लघु श्राश्वलायन स्मृति १५ विवाह प्रकरण तथा मानवगृह्यसूत्र पुरुष १ खण्ड ८ से १४ ) उससे है । एक बार आपसमें ऐसा संबंध क़ायम होतेही फिर वह कभी भंग नहीं हो सकता मगर शर्त यह है कि विवाहमें कोई जालसाज़ी या ज़बरदस्ती न की गयी हो या बापकी विना रजामन्दी विवाह हुआ हो तो देखो - मूलचन्द बनाम बुधिया 22 Bom 812.
६८
[ दूसरा प्रकरण
द्विजोंके विवाह में दो रसमोंके पूरा कर चुकनेपर विवाहकी कृत्य पूर्ण समझी जाती है ( १ ) हवन ( २ ) सप्तपदी ( यमस्मृति श्लोक ७८,८६) 'सप्तपदी, का मूल अर्थ है 'सातपद वाला कर्म' बिवाहमें अन्य कृत्यों अर्थात् सात भांवरोंके हो जानेपर, वर और वधू ग्रन्थिबंधनसहित अग्निके सन्मुख वैदिकविधि के अनुसार सात पद चलते हैं; देखो - चुन्नीलाल बनाम सूरजराम ( 1909 ) 33 Bom. 433, 437, 438; अथीकेसावालू बनाम रामानुजम् 32 Mad. 512, 519, 520; बृन्दावन बनाम चन्दरा 12 Cal. 140.
अगर किसी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के विवाहमें हवन और सप्तदी की कृत्य कुछ बाक़ी रहगयी हो, तो महज़ गौना होजानेके सबब से विवाह की कृत्य पूरी नहीं समझी जायगी क्योंकि गौना विवाहकी कृत्य पूरी होनेके लिये ज़रूरी नहीं है; देखो - - अदनजिनमदरास बनाम अनन्दाचार्य 9 Mad. 466, 470; दादाजी बनाम सखमा बाई 10 Bom. 301, 311.
यदि किसी जाति में किसी रसमके पूरा करनेके पश्चात् विवाहकी कृत्य पूरी समझी जाती हो तो उस जातिके लिये उस रसमके हो चुकने पर विवाह की कृत्य पूरी मानी जायगी। देखो - कालीचरन बनाम दुःखी 5 Cal. 692; हरीचरण बनाम निमाई 10 Cal. 138.
जहां पर यह साबित किया गया हो कि विवाहकी सब कृत्यें हो चुकी थीं तो अदालत क़ानूनके अनुसार उस विवाहको जायज़ मान लेवेगी- देखो इन्दन बनाम रामासामी 13 M. I. A. 141, 158; फकीर गौदा बनाम गंगी 22 Bom. 277, 279; और अगर यह साबित किया गया हो कि ज़रूरी रसमें सब हो चुकीं थीं तो भी जायज़ मानलेगी देखो - मौजीराम बनाम चन्द्रावती 38 Cal. 700; 38 I.A. 122. वृंदावन बनाम चन्दरा 12 Cal. 140; बाई दिवाली बनाम मोती 22 Bom. 909; विधवा का विवाह - हिन्दू लॉ के अनुसार विधवा पुनर्विवाहमें किसी रसमकी ज़रूरत नहीं है । देखो - हिन्दू बिड़ो रि मेरेज एक्ट नं० १५ सन ८६५६ की दफा ६ ( इस प्रकरण के अन्तमें ।)