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दफा ६२-६३]
वैवाहिक सम्बन्ध
लड़की ही पैदा करने वाली, और पति से द्वेष रखने वाली स्त्रीके जीवित रहनेपर भी अपना दूसरा विवाह कर लेवे । दूसरा विवाह करनेपर उचित रीतिसे पहली स्त्रीका पालन करे क्योंकि उसका पालन नहीं करनेसे पति नरक गामी होगा । व्यास जी कहते हैं कि-व्यास स्मृति २ अ० ५०
धूर्ता च धर्मकामध्नींमपुत्रां दीर्घरोगिणीम् सुदुष्ट व्यसनासक्ता महिता मधिवासयेत् ।
धर्म तथा कामको नष्ट करने वाली, पुत्र हीना, सदा बीमार रहने वाली, अति दुष्टा, मदधान आदि व्यसनमें आसक्त रहने वाली, विरुद्ध काम करने वाली ऐसी स्त्रीके जीते रहनेपर भी दूसरा विवाह पुरुष कर लेवे । और देखो दिवेलियन हिन्दूला (दूसरा एडीशन पेज ३२ ) और इस किताब की दफा ५८ पैरा ५ दफा ६३ स्त्रीका पुनर्विवाह
__ धर्म शास्त्रोंमें कई स्त्रियोंसे एक साथ विवाह करना जायज़ बताया गया है, मगर एक साथ कई पतियोंसे विवाह करना वर्जित किया गया है। कुछ वचन ऐसे हैं जिनमें स्त्रीका पुनर्विवाह वर्जित किया गया है। देखो दफा ६१ मनु कहते हैं कि स्त्री पुनर्विवाह न करे । इसपर मिस्टर मेन कहते हैं कि मनुस्मृतिमें यह श्लोक किसीने जोड़ दिया है। जो हो साधारणतः सब शास्त्र विधवा विवाहके विरुद्ध हैं और जहां कहीं ऐसा मञ्जूर किया गया है वहां कोई खास प्रसङ्ग है; अाम क़ायदा नहीं माना गया। विधवा विवाहके सम्बन्ध में जहां कहीं जो वाक्य हैं उनमें विधवा विवाहकी आज्ञा नहीं दी गयी है बक्लि एक प्रकारसे स्वीकार कर लिया गया है अगर कोई रवाज विरुद्ध न हो सो पतिकी मञ्जूरी बिना कोई हिन्दू औरत अपना विवाह दूसरे पुरुषके साथ नहीं कर सकती।
जब स्त्री, पतिके त्याग देनेपर या विधवा हो जानेपर अपनी इच्छासे अन्य पुरुषकी भार्या बनकर पुत्र उत्पन्न करती है तब वह पुत्र 'पौनर्भव' कहलाता है; देखो दफा ८२।मनु कहते हैं कि यदि कोई स्त्री, पुरुषके सहवास से बचकर किसी दूसरे पुरुषके पास जावे तो वह विवाह संस्कार करके उसे ग्रहण करे अथवा यदि किसी स्त्रीको पतिने त्याग दिया हो और वह परपुरुष के समीप रहनेपर भी सहवाससे बची हो, पीछे अपने पहिले पतिके पास लौट आवे तो उस स्त्रीसे विवाह संस्कार फिर करना चाहिये । मगर वह स्त्री अब 'पुनर्भूपत्नी' कहलायेगी देखो मनु०अ०६-१७६। शातातप कहते हैं