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विवाह
[दूसरा प्रकरण
यह कमी पूरी कर दी इसी उद्देश्यसे इस कानूनका निर्माण हुआ। ब्रिटिश भारतमें इसका प्रभाव है और विधवा विवाहका यही कानून मूलाधार है। हमने इस क़ानूनको अविकल रूपसे इसी विवाह प्रकरणके अन्तमें जोड़ दिया है कि पाठकोंको पूरी जानकारी हो जाय ।
श्री दयानन्दी विधवा-माना गया है कि श्री स्वामी दयानन्दके मतका अपलम्धन करनेसे हिन्दू बना रहता है। उस मतका नाम 'आर्यसमाज' है वे हिन्दू होते हैं सूर्य ज्योति कुंवर विधवा होनेके बाद एक मुसलमान के पास बैठ गयी पीछे उसके साथ निकाह किया तय हुआ कि विधवाके सब हक जो पहले पतिसे मिले थे जाते रहे। विधवा दयानन्दीमतकी थी। जवाब में कहा गया था कि दयानन्दी मत हिन्दू नहीं है। यह भी तय हुआ कि जिन क़ौमों में विधवा विवाह जायज़ माना जाता है उनमें भी विधवा दूसरा विवाह करने पर पहले पतिकी जायदाद नहीं पा सकती देखो 1922 H. L. J. 77, 1922 P. (Sup.) 235.
खत्री विधवाका पुनर्विवाह--खत्री विधवाके पुनर्विवाहके जायज़ होने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वे तमाम रसमें अदाकी जांय जो कन्या के प्रथम विवाहमें करनी होती हैं। यदि दोनों पक्ष ऐसे रिवाजोंको अदा कर लेते हैं जिनका वे प्रवन्ध कर सकते हैं और पति-पत्नी हृदयसे विवाह करना चाहते हैं तथा पति-पत्नीकी भांति एक साथ रहते हैं, तो विवाह जायज़ होता है । मु० राम राखो बनाम दौलतराम 90 I. C. 1056; 26 Panp. L. R, 744. विधवा खत्रीका विवाह और रवाज--मु० राम रखनी बनाम दौलतराम A, I. R 1926 Lah, 31.
पुनर्विवाह विधवाका-जबकि एक भाईकी विधवाने अपनी जातिके रखाजके अनुसार दूसरे भाई के साथ शादीकर ली हो। तय हुआ कि वह दोनों भाइयों द्वारा छोड़ी हुई जायदादकी वारिस है। नागर बनाम खासे L R.6 All. 267; 86 I. C. 893; A. I. R. 1925 All. 440. दफा ६४ दो भिन्न जातियोंके परस्पर विवाह .. दो भिन्न जातियोंके परस्पर विवाह नाजायज़ हैं; अर्थात् ब्राह्मण और क्षत्रिय, या ब्राह्मण और वैश्य, या ब्राह्मण और शूद्र । इसी तरहपर क्षत्रिय
और ब्राह्मण, या क्षत्रिय और वैश्य, या क्षत्रिय और शूद्र । एवं वैश्य और ब्राह्मण, या पैश्य और शूद्र तथा शूद्र और ब्राह्मण, या शूद्र और क्षत्रिय, या शूद्र और वैश्य, के परस्पर विवाह नहीं हो सकते । देखो-पद्मकुमारी बनाम सूर्यकुमारी 28 All. 458; 2 Bom. L. R 128; भट्टाचार्य हिन्दूलॉ 2 Ed. P.58; व्यवस्था दर्पण ६५६; मिताक्षरा १-११ रामलाल शुक्ल बनाम अक्षयकुमार मित्र 7C. W. N. 619.