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विवाह
[ दूसरा प्रकरण
रसम भी हो तो उस रसमके पूरा करनेहीसे विवाह जायज़ माना जायगा, 20 M. L. J. R. 49.
मदरास प्रांतके तिनेबली जिलेमें 'कैकोलर' ( जुलाहे ) जातिकी ईसाई मां-बापकी एक लड़की अपने विवाह के समय हिन्दू मानी गयी ३० । ४० वर्ष तक उसकी जातिवालोंने उसको और उसके पतिको अपनी जातिमें रखा और दोनों को परस्पर पति-पत्नी माना, यह माना गया कि उन दोनोंके विवाह जायज़ हैं क्योंकि वह उस जातिकी रसमके अनुसार हुआ था । यह भी माना गया कि हिन्दूला ऐसे विवाह को वर्जित नहीं करता क्योंकि वह एक जातिकी खास रसमके अनुसार हुआ था 20M. L J. R. 49.
( २ ) कन्या उमरमें छोटी हो यह आम बात है, मगर किसी भी उमर की लड़की से विवाह किया जासकता है । अब यह बात नहीं मानी जा सकती है चाइल्ड मेरेज रिस्ट्रेन्ड ऐक्ट सन १६२८ ई० देखो इस प्रकरणके अन्तमें ।
(३) एक्ट नम्बर १५ सन १८५६ के अनुसार अब विधवा स्त्रींसे भी विवाद किया जासकता है- देखो 'विडोरिमेरेज एक्ट' इस प्रकरणके अन्तमें ।
( ४ ) जिस स्त्रीका पति मौजूद हो उससे कदापि विवाह नहीं किया जा सकता, यदि कोई ऐसा करे तो क़ानून ताज़ीरात हिन्दकी दफा ४६४ के श्अनुसार दण्ड पायेगा । बम्बई के एक मुक़द्दमे में यह माना गया कि यद्यपि किसी जाति यह रसम हो कि एक पति के जीवनकालमें और उसकी मंजूरी लिये बिना कोई स्त्री दूसरा विवाह कर सकती है, फिर भी क़ानूनमें ऐसा विवाह नाजायज़ माना गया है और ऐसे मामलेमें स्त्री और दूसरे पुरुषको पूर्वोक्त दफा ४६४ और ४६७ के अनुसार दण्ड दिया जायगा -देखो कैसर हिन्द बनाम करसन गोजा 2 Bom H. C. R. 117. कुछ हालतों में स्त्री अपने पतिकी मंजूरी से दूसरा विवाह कर सकती है; देखो कैसर हिन्द बनाम उमी 6 Bom, 126 अपनी जातिवालों को कुछ रुपया देकर और बिना तलाक़ लिये 'नतरा'
का विवाह करने का रवाज सदाचारके विरुद्ध माना गया; देखो उजी बनाम हाथीलाल 7 Bom. H. C. R. 133.
जिनमें तलाक़ जायज़ है उनमें तलाक़ होजानेके बाद पति-पत्नी यदि एक दूसरेके विवाहका खर्च अदा करदें तो स्त्रीका दूसरा विवाह करलेना सदाचार के लिये विरुद्ध नहीं है; देखो शङ्कर लिङ्ग बनाम सुष्बन चड्डी 17 Mad 479; 15 Mad. 307.
(५) जिस किसी लड़कीकी सगाई किसी एक से हो गई हो, तो भी उसका विवाह दूसरे आदमीसे किया जा सकता है क्योंकि सगाई से विवाह करना निश्चित होता है मगर विवाह हो नहीं जाता; देखो दफा ६८.