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दफा ५२-५३]
विवाहमे वर्जित सपिण्ड
दफा ५२ सपिण्डोंमें विवाह करनेकी मनाही
बनरजीके 'लॉ ऑफ मेरेज' के तीसरे एडीशनके पेज २४, २४७ में कहा गया है कि अगर कोई रवाज इसके विरुद्ध न हो तो धर्मशास्त्रमें मनाही किये हुए सपिण्डों और रिश्तेदारोंके दरमियान विवाह करना नाजायज़ है । द्विजोंमें कोई आदमी अपनेही गोत्र या अधिकांश प्रवर समान होनेपर किसी स्त्रीके साथ विवाह नहीं कर सकता; अर्थात् विवाह करनेवाले लड़केका बाप और लड़कीका बाप दोनों किसी ऐकही मूल पुरुषकी नीचेकी मर्दशाखामे हों तो विवाह नहीं हो सकता । यह सिद्धांत शूद्रोंसे नहीं लागू होगा क्योंकि उनमें । प्रायः कोई खास गोत्र नहीं कहे जाते ।
मिताक्षरा और बंगालस्कूल दोनोंमें यह सिद्धांत माना गया है कि कोई आदमी अपने सपिण्डकी स्त्रीसे विवाह नहीं कर सकता, मगर दोनों स्कूलोंमें विवाहके सपिण्ड कौन रिश्तेदार हैं इस बातके निर्णय करने में अधिक मतभेद है । यह ध्यान रहे कि उत्तराधिकारके सपिण्डों और विवाह के सपिण्डोंमें अन्तर है नीचे विवाहके सपिण्ड बताये गये हैं । पहिले बंगालस्कूलके सपिण्ड और पीछे मिताक्षराके सपिण्ड क्रमसे देखोदफा ५३ बंगालस्कूलमें सपिण्ड कन्या कौन है ?
बंगाल स्कूलमें जहांपर सर्वोपरि जीमूतवाहनका टीका दायभाग माना जाता है वहांपर नीचे लिखे कायदोंके अनुसार लड़कीका विवाह वर्जित है:--
(१) अगर लड़की अपने बापके पूर्वजोंकी सात पीढ़ीके अन्दर हो (२) अगर लड़की अपनी मांके पूर्वजोंकी पांच पीढ़ीके अन्दर हो (३) अगर लड़की अपने बापके तीन खास बन्धुओंकी सात पीढ़ीके
अन्दर हो। (४) अगर लड़की अपनी मांके तीन खास बन्धुओंकी पांच पीढ़ीके
अंदर हो। यह माना गया है कि ऊपरके चारों कायदोंके भीतर अगर लड़की हो और वह लड़केके गोत्रसे तीन गोत्र भिन्न हो तो विवाह हो सकता है। देखो-दफा ५४ का दूसरा उदाहरण-(बंगाल स्कूलके अनुसार नीचेका नक़शा देखो) देखा-बनर्जी लॉ आफ् मेरेज एण्ड स्त्री धन सन १६१३ ई० पेज ६३.