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दका ३६ ]
विवाहके भेद आदि
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एवमेनःशमं याति बीजगर्भसमुद्भवम् तूष्णीमेताः क्रियाः स्त्रीणां विवाहस्तु समंत्रकः।१-१३
हिन्दुओंमें दश संस्कार होते हैं यथा गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, यज्ञोपवीत और विवाह । इन दश कमौका फल यह भी है कि माता पिताके शरीरके द्वारा जो पाप गर्भ में आता है वह शांति पा जाता है और स्त्रियोंके जात कर्म आदि मन्त्रोंके बिना और विवाह वेदोक्त मन्त्रोंसे होता है। मतलब यह है कि विवाह एक धर्म कृत्य है। कोई खास क़िस्मका कन्ट्राक्ट (मुआहिदा) नहीं है । हिन्दूलों में विवाह अकाट्य सम्बन्ध माना गया है।
26 Mad. 505 और 27 Mad. 206 में मदरास हाईकोर्ट ने स्मृति चन्द्रिकाके अनुसार यह माना था कि विवाह कोई संस्कार नहीं है, इसलिये पिता या दूसरा कोई कोपार्सनर उस क़र्जेका ज़िम्मेदार नहीं है जो मुश्तरका खानदानकी किसी लड़की या लड़केके विवाहके लिये लिया गया हो। लेकिन ऐसा फैसला करने में मदरास हाईकोर्टने मिताक्षराके सिद्धांतका झ्याल नहीं किया, इसी सबबसे इस फैसलेको दूसरी हाईकोर्ट नहीं मानतीं और अब हालमें मदरास हाईकोर्टने भी अपनी उक्त राय बदलना शुरू कर दिया है, देखोरघुनाथ बनाम दामोदर (1910 ) M. W. N. 195. ..
हिन्दू धर्मशास्त्रोंका सिद्धांत है कि जिन लड़कियोंके विवाह या दूसरे संस्कार न हुए हों, उन लड़कियोंके बड़े भाई पैतृकसंपत्तिसे उन संस्कारोंको अवश्य पूरा करें। यही वात खानदानके लड़कोंके विवाहमें भी है ( देखो दफा ४३०); याज्ञवल्क्यने कहा है कि विवाहका खर्च खानदानके सब आदमियों के हिस्लेमें लिया जाय
असंस्कृतास्तुसंस्कार्या भ्रातृभिः पूर्वसंस्कृतैः भगिन्यश्च निजादंशाहत्त्वांशंतु तुरीयकम् । व्यव० १२४
जिन भाइयों का संस्कार पिता के जीवन कालमें न हुआ हो उनका संस्कार संस्कृत भाई करें; और जिन बहनोंका विवाह न हुआ हो उनका विवाह रूप संस्कार भी वे भाई अपने अपने हिस्सेकी चौथाई जायदाद देकर करें । हिन्दुओं में विवाह एक संस्कार है। प्राचीन रोमनोंमें भी विवाह कंटापट नहीं माना जाता था यह सिर्फ पिछले ज़मानेसे अङ्गरेज़, मुसलमान, पारसी आदि समाजों में विवाह कंट्राक्टके सदृश्य माना जाता है धर्मशास्त्रमें आठ प्रकारके विवाह बतलाये गये हैं और उनके विधान भी कहे गये हैं।