Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गोम्मटसार कर्मकाण्ड-१८ सादिय-कुज्ज-वामण-हुण्डसरीरसंठाणं चेदि। सरीर-अंगोवंग णामं तिविहं-ओरालिय, वेगुब्विय, आहारसरीरअंगोवंगणामं चेदि।
सूत्रार्थ - शरीरसंघातनामकर्म पाँच प्रकार का है - औदारिकशरीरसंघातनामकर्म, वैकि यकशरीरसंघातनामकर्म, आहारकशरीरसंघातनामकर्म, तैजसशरीरसंघातनामकर्म और कार्मणशरीरसंघातनामकर्म। शरीरसंस्थाननामकर्म छह प्रकार का है - समचतुरस्रसंस्थाननामकर्म, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म, स्वातिसंस्थाननामकर्म , कुब्जकसंस्थाननामकर्म, वामनसंस्थाननामकर्म
और हुण्डकसंस्थाननामकर्म । शरीरअङ्गोपाङ्गनामकर्म तीनप्रकार का है - औदारिकशरीराङ्गोपाङ्गनामकर्म, वैक्रियकशरीराङ्गोपाङ्गनामकर्म और आहारक्शरीराङ्गोपाङ्गनामकर्म। ...... ...... अब शरीर के अङ्गोपाङ्गों का नामनिर्देश करते हैं -
णलया बाहू य तहा, णियंबपुट्ठी उरो य सीसो य।
अष्ट्रेव दु अंगाई, देहे सेसा उवंगाई॥२८॥ अर्थ - दो पैर, दो हाथ, नितम्ब-कमर के पीछे का भाग, पीठ, हृदय और मस्तक ये आठ तो शरीर में अङ्ग हैं, अन्य नेत्र-कान आदि सर्व उपाङ्ग कहलाते हैं।' ताड़पत्रीय मूल गो. क. से उद्भुत सूत्र
संहडण-णामं छविहं वजरिसहणारायसंहडणणामं वजणाराय-णारायअद्धणारायखीलिय-असंपत्त सेवटि-सरीरसंहडणणामं चेइ।
सूत्रार्थ - संहनननामकर्म छह प्रकार का है - वज्रर्षभनाराचसंहनननामकर्म, वज्रनाराचनाराच-अर्धनाराच-कीलित-असंप्राप्तासृपाटिका शरीरसंहनननामकर्म ।
नोट - वज्रर्षभनाराचसंहनन को पृथक् कहने का प्रयोजन यह है कि इस संहननवाले जीव ही मोक्ष जा सकते हैं।
१. नलक, हाथ, पैर, पेट, नितम्ब, छाती, पीठ, सिर : ये ८ अंग हैं।
मस्तक की हड्डी, मस्तक, ललाट, भुजसन्धि, कान, नाक, नेत्र, अक्षिकूप, ठुड्डी, गाल, ओठ, ओठ के किनारे, तालू, जीभ, गर्दन, चुचुक स्तन, अंगुलि आदि उपांग हैं। (नलकबाहूरुदर-नितम्बोर: पृष्ठशिरांस्यष्टावंगानि, उपांगानि च मूर्द्धकरोटि- मस्तक-ललाटसन्धि भ्रूकर्ण नासिकानयनाक्षिकूपहनुकपोलाधरोष्ठसृक् तालुजिङ्गाग्रीवास्तन चूंचुकांगुल्यादीनि भवन्ति ।)
(मूलाचार १२३६ पृ. ३६४ भाग २ ज्ञानपीठ प्रकाशन अनु. पू. ज्ञानमती जी)