Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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वैक्रियक-वैक्रियकशरीरबन्धन, वैक्रियक-तैजसशरीरबन्धन, वैक्रियक कार्मण-शरीरबन्धन, वैक्रियक-तेजस-कार्मणशरीरबन्धन | वैक्रियक की अपेक्षा ये चार भङ्ग हैं। आहारक-आहारकशरीरबन्धन, आहारक-तैजसशरीरबन्धन, आहारक-कार्मण-शरीरबन्धन, आहारक-तैजस-कार्मणशरीरबन्धन। इस प्रकार आहारक की अपेक्षा भी चार भङ्ग हैं।
तैजस-तैजसशरीरबन्धन, तैजस-कार्मणशरीरबन्धन ये दो भङ्ग तेजस की अपेक्षा से हैं। तथा कार्मण-कार्मणके संयोगसे कार्मण कार्मण शरीरबन्धन का एक भङ्ग है। इस प्रकार सर्व १५ भन शरीरबन्धननामकर्म के होते हैं। ये भङ्ग शरीरबन्धननामकर्म के संयोगबन्ध की अपेक्षा कहे हैं।
__औदारिक-औदारिक, वैक्रियक-वैक्रियक, आहारक-आहारक, तैजस-तेजत, कार्मणकार्मणबन्ध में औदारिकआदि शरीरबन्ध के पाँचभेद गर्भित हो जाते हैं। जैसे औदारिक से औदारिक का संयोगबन्ध कहा, वे दोनों सदृश हैं अत: जो शरीरबन्धन प्रकृति के भेदों में औदारिकशरीरबन्धन कहा है उसमें गर्भित हुआ। इसी प्रकार अन्य चारों का भी समावेश जानना चाहिए। अतएव १५ में से पाँच कम करने से दस शेष रहे; नामकर्म की ९३ प्रकृतियों में ये दस प्रकृति मिलानेपर नामकर्म की १०३ प्रकृति होती हैं। ताड़पत्रीय मूल गो.क. से उद्धृत सूत्र
सरीरं संघादणाम पंचविहं ओरालिय-वेगुज्यिय-आहार-तेज-कम्मइय सरीर-संघादणामं चेदि। सरीरसंठाणणामकम्म छव्विहं समचउरसंठाणणामणग्गोदपरिमंडल
१. यहाँ आगम में मात्र ५ शरीरों के एकादि संयोग रूप बंध विकल्प उत्पन्न किए हैं जो १५ ही होते हैं, यह बताया है। जैसे
कि औदारिक शरीर नोकर्म स्कन्धों का अन्य औदारिक शरीर नोकर्म स्कन्धों के साथ जो बन्ध होता है वह औदा.
औदा. शरीरबंध है। इसी तरह औदारिक शरीर के पुद्गलों का और तैजस शरीर के पुद्गलों का एक जीव में जो परस्पर बंध होता है वह औदारिक तैजस बंध है। एक जीव में स्थित औदारिक स्कन्धों और कार्भण स्कन्धों का जो परस्पर बंध होता है वह औदा. कार्मण शरीर बंध है; इत्यादि । इस तरह ये बन्ध विकल्प बताना ही यहाँ प्रयोजन है। (धवल १४/ ४२ तथा धवल १३/३१-३३) इस तरह उक्त १५ भेद शरीर बन्धन के हैं। अत: इन १५ प्रकार के शरीर बन्धनों के कारणभूत कर्म यानी शरीर बंधन नामकर्म भी १५ प्रकार का हो जाता है। इनका कार्य - जिस नाम कर्म के उदय से औदारिक शरीर नोकर्म स्कन्धों का अन्य औदारिक शरीर नोकर्म स्कन्धों के साथ बन्ध रूप कार्य होता है। वह औदारिक औदारिक शरीर बन्धन नाम कर्म है। इसी तरह जिस नाम कर्म के उदय से
औदा. शरीर पुद्गलों का तैजस शरीर पुदगलों के साथ एक जीव में जो परस्पर बन्ध होता है वह औदा, तैजस शरीर बन्धन नाम कर्म है। इसी तरह शेष १३ में भी लगाना। गो. क. २७ में १५ शरीर बन्धन नाम कर्मों का वर्णन है।