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आदर्श जीवन ।
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हो गई | सच है भक्ति कभी निष्फल नहीं होती । इसी लिये तो श्री १००८ श्रीमानतुंगाचार्य महाराज, भगवान श्री आदिनाथकी स्तुति करते हुए भक्तामरके दसवें काव्यमें लिखते हैं ? -
नात्यद्भुतं भुवनभूषणभूत नाथ, भूतैर्गुणैर्भुवि भवंतमभिष्टुवंतः
तुल्या भवंति भवतो ननु तेन किंवा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥
इस चौमासेही में आपको, यद्यपि व्यवहारसे नहीं तथापि निश्चय से, आचार्यश्रीने पढ़ानेका काम करनेकी आज्ञा देकर, उपाध्याय पदवी प्रदान कर दी । इसलिए आपको अध्ययन करते हुए भी उपाध्यायका यानी अध्यापनका काम करना पड़ता था । झवाड़ानिवासी दीपचंद भाई; दशाड़ानिवासी वर्द्धमानभाई, पाटननिवासी वाडीलालभाई और अहमदाबाद निवासी मगनलालभाई ये चारों सज्जन दीक्षालेनेकी अभिलाषासे श्रीसूरिजी महाराजके चरणोंमें उपस्थित हुए थे । इन्हें आप जीवविचार, नववाद प्रकरण और व्याकरण पढ़ाते थे । स्वयं इस प्रकार काममें लगे रहने पर भी आपने वृद्ध मुनिराज श्री १०८ श्री
१ - - हे नाथ ! हे जगत्के भूषण ! आपकी स्तुति करनेवाले - आपके भक्त-यदि आपके ही सत्य गुणों से आपके समान हो जाते हैं तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है । वह स्वामी किस कामका है जो अपनी संपत्ति से निजाश्रितों को अपने • समान नहीं बना लेता है ?
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