________________ पृथ्वी से बाहर निकलता है, तब उसे देख कर हम यह जान लेते हैं कि यह पहले छोटा अंकुर था जो दिखाई नहीं पड़ता था, मगर था वह अवश्य, यदि छोटे रूप में न होता तो अब बड़ा होकर कैसे दिखाई पड़ता ? इस प्रकार बड़े को देखकर छोटे का अनुमान हो ही जाता है। कार्य को देख कर कारण को मानना ही न्याय संगत है। बिना कारण के कार्य का होना असंभव है। इसी प्रकार कार्य कारण के सम्बन्ध से यह भी जाना जा सकता है कि जो ज्ञान ईहा के रूप में आया है वह अवग्रह के रूप में अवश्य था, क्योंकि बिना अवग्रह के ईहा का होना सम्भव नहीं है। जम्बूस्वामी छद्मस्थ थे। उन्हें जो मतिज्ञान होता है वह इन्द्रिय और मन से होता है। इन्द्रिय तथा मन से होने वाले ज्ञान में बिना अवग्रह के ईहा नहीं होती। सारांश यह है कि पहले के "जायसड्ढे जायसंसए" और "जायकोउहल्ले" ये तीन पद अवग्रह के हैं। "उप्पन्नसड्ढे, उप्पन्नसंसए" और "उप्पन्नकोउहल्ले"ये तीन पद ईहा के हैं। "संजायसड्ढे, संजायसंसए" और "संजायकोउहल्ले"ये तीन पद अवाय के हैं। और "समुप्पन्नसड्ढे, समुप्पन्नसंसए" तथा "समुप्पन्नकोउहल्ले" ये तीनों पद धारणा के हैं। इसके आगे जम्बूस्वामी के सम्बन्ध में कहा है कि "उट्ठाए उठेइअर्थात् जम्बूस्वामी उठने के लिए तैयार हो कर उठते हैं। प्रश्न-होता है कि यहां "उट्ठाए उद्वेइ" ये दो पद क्यों दिए गए हैं ? इसका यह उत्तर है कि-दोनों पद सार्थक हैं। देखिए-पहले पद से सूचित किया है कि जम्बूस्वामी उठने को तैयार हुए। दूसरे पद से सूचित किया है कि वे उठ खड़े हुए। दोनों पद न देकर यदि एक ही पद होता तो उठने के आरम्भ का ज्ञान तो होता परन्तु "उठ कर खड़े हुए"-यह ज्ञान न हो पाता। जैसे-बोलने के लिए तैयार हुए, इस कथन में यह सन्देह रह जाता है कि बोले या नहीं , इसी प्रकार एक पद रखने से यहां भी सन्देह रह जाता। "आर्य जम्बू स्वामी, आर्य सुधर्मा स्वामी को विधिवत् वन्दना नमस्कार कर उन की सेवा में उपस्थित हुए और उपस्थित होकर इस प्रकार निवेदन करने लगे"- इस भावार्थ को सूचित करने वाले "नमंसित्ता जाव पन्जुवासति पंजुवासित्ता एवं वयासी" इस पाठ में आए हुए "जाव यावत्" शब्द को निम्नांकित पाठ का उपलक्षण समझना, जैसे कि ___ "अजसुहम्मस्स थेरस्स णच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहं पंजलिउडे विणएणं ......... [आर्यसुधर्मणः स्थविरस्य नात्यासन्ने नातिदूरे शुश्रूषमाणः नमस्यन् अभिमुखं प्रांजलिपुटः विनयेन...........] श्री जम्बूस्वामी ने आर्य सुधर्मास्वामी के प्रति क्या निवेदन किया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं 114 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध