________________ आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति। से णं ततो अणंतरं चइत्ता महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं भवन्ति अड्ढाइं दित्ताई वित्ताई विच्छिण्णविउल-भवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूवरययाई आओगपओगसंपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइंबहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाइं जहा दढपतिण्णे, सा चेव वत्तव्वया कलाओ जाव सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिणव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करिहिति-" इन पदों की ओर संकेत कराना सूत्रकार को अभिमत है, इन पदों का भावार्थ निम्नोक्त है ___बोधि-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर के गृहस्थावास को छोड़ कर साधुधर्म में दीक्षित हो जाएगा और वह ईर्यासमित-यतनापूर्वक गमन करने वाला, भाषासमितयतनापूर्वक बोलने वाला, एषणासमित-निर्दोष आहार-पानी ग्रहण करने वाला, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा-समित-वस्त्र, पात्र और पुस्तक आदि उपकरणों को उपयोगपूर्वक ग्रहण करने और रखने वाला, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिष्ठापनिकासमितअर्थात् मल मूत्र, थूक, नासिकामल और पसीने का मल इन सब का यतनापूर्वक परिष्ठापन करने वाला अर्थात् परठने वाला, मनसमित-मन के शुभ व्यापार वाला, वच-समित-वचन के शुभ व्यापार वाला, कायसमित-काया के शुभ व्यापार वाला, मनोगुप्त-मन के अप्रशस्त व्यापार को रोकने वाला, वचोगुप्त-वचन के अशुभ व्यापार को रोकने वाला, कायगुप्त-काया के अशुभ व्यापार को रोकने वाला, गुप्त-मन-वचन या काया को पाप से बचाने वाला, गुप्तेन्द्रिय-इन्द्रियों का निग्रह करने वाला, गुप्तब्रह्मचारी-ब्रह्मचर्य का संरक्षण करने वाला अनगार होगा। और वह साधुधर्म में बहुत वर्षों तक साधुधर्म का पालन कर आलोचना (गुरु के सन्मुख अपने दोषों को प्रकट करना, तथा प्रतिक्रमण (अशुभयोग से निवृत्त हो कर शुभयोग में स्थिर होना) कर समाधि-(चित्त की एकाग्रतारूप ध्यानावस्था) को प्राप्त होकर मृत्यु का समय आने पर काल करके सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होगा। वहां से वह बिना अन्तर के च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में निनोक्त कुलों में उत्पन्न होगा वे कुल सम्पन्न-वैभवशाली, दीप्त-तेजस्वी, वित्त-प्रसिद्ध (विख्यात), विस्तृत और विपुल मकान, शयन (शय्या), आसन, यान (रथ आदि) वाहन। (घोड़ा आदि अथवा नौका जहाज़ आदि), धन, सुवर्ण और रजत-चांदी की बहुलता से युक्त होंगे। उन कुलों में द्रव्योपार्जन के उपाय प्रयुक्त किए जाएंगे अथवा अधमर्णों (कर्जा लेने वालों) को ब्याज पर रुपया दिया जाएगा। उन कुलों में भोजन करने के अनन्तर भी बहुत सा अन्न बाकी बच जाएगा। उन कुलों में दास दासी आदि पुरुष और गाय, भैंस तथा बकरी आदि पशु प्रचुर संख्या में रहेंगे 478 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध