________________ कही हुई। उप्फेणउप्फेणियं-दूध के उफान के समान क्रुद्ध हुई अर्थात् क्रोधयुक्त प्रबल वचनों से। सीहरायं-सिंहराज के प्रति। एवं वयासी-इस प्रकार बोली। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सामी !हे स्वामिन् ! ममं-मेरी। एक्कूणगाणं-एक कम। पंचण्हं सवत्तोसयाणं-पांच सौ सपत्नियों की। एक्कूणगाई-एक कम।पंच-पांच।माइसयाई-सौ माताएं। इमीसे-इस। कहाए-कथा-वृत्तान्त से।लद्धट्ठाई समाणाइं-लब्धार्थ हुईं-अवगत हुईं। अन्नमन्नं-एक दूसरे को। सद्दावेंति सद्दावित्ता-बुलाती हैं, बुलाकर। एवं वयासी-इस प्रकार कहती हैं। एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। सीहसेणे-सिंहसेन / राया-राजा। सामाए-श्यामा। देवीए-देवी में। मुच्छिते ४-मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न हुआ। अम्हं-हमारी। धूयाओ-पुत्रियों का।णो आढाइ-आदर नहीं करता। नो परिजाणाइ-ध्यान नहीं रखता। अणाढायमाणेआदर न करता हुआ। अपरिजाणमाणे-ध्यान न रखता हुआ। विहरइ-विहरण करता है। तं-इस लिए। सेयं-श्रेय-योग्य है। खलु-निश्चयार्थक है। अम्हं-हमें। सामं-श्यामा। देविं-देवी को। अग्गिप्पओगेण वा-अग्नि के प्रयोग से। विसप्पओगेण वा-विष के प्रयोग से। सत्थप्पओगेण वा-शस्त्र के प्रयोग से। जीवियाओ ववरोवित्तए-जीवन से रहित कर देना। एवं संपेहेंति संपेहित्ता-इस प्रकार विचार करती हैं, विचार कर। ममं-मेरे / अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य-अन्तर, छिद्र और विरह की। पडिजागरमाणीओ-प्रतीक्षा करती हुईं। विहरंति-विहरण कर रही हैं। तं-अतः। न णज्जति-मैं नहीं जानती हूँ कि / सामी!-हे स्वामिन् ! ममं-मुझे। केणइ-किस। कुमारेणं-कुमौत से। मारिस्संति-मारेंगी। त्ति कट्ट-ऐसा विचार कर। भीया ४-भीत, त्रस्त, उद्विग्न और संजातभय हुई। जाव-यावत्। झियामिविचार कर रही हूँ। तते णं-तदनन्तर / से-वह / सीहसेणे राया-सिंहसेन राजा। सामं देविं-श्यामा देवी के प्रति।एवं वयासी-इस प्रकार बोला। देवाणुप्पिए !-हे महाभागे !तुम-तुम।माणं-मत।ओहतमणसंकप्पाअपहत मन वाली हो। जाव-यावत्। झियासि-विचार करो। अहं णं-मैं। तहा-वैसे। जत्तिहामि-यत्न करूंगा। जहा णं-जैसे। तव-तुम्हारे / सरीरस्स-शरीर को। कत्तो वि-कहीं से भी।आबाहे वा-आबाधाईषत् पीड़ा। पवाहे वा-प्रबाधा-विशेष पीड़ा। नत्थि-नहीं। भविस्सति-होगी। त्ति कट्ट-इस प्रकार से अर्थात् ऐसे कह कर / ताहि-उन / इट्ठाहि-इष्ट / जाव-यावत् वचनों के द्वारा उसे। समासासेति-सम्यक्तया आश्वासन देता है-शान्त करता है। ततो-तत्पश्चात् वहां से।पडिनिक्खमति-निकलता है। पडिनिक्खमित्तानिकल कर। कोढुंबियपुरिसे-कौटुम्बिक पुरुषों को। सद्दावेति सद्दावित्ता-बुलाता है, बुलाकर। एवं वयासी-इस प्रकार कहता है। देवाणुप्पिया !-हे भद्र पुरुषो ! तुब्भे-तुम लोग। गच्छह णं-जाओ, जाकर / सुपइट्ठस्स-सुप्रतिष्ठित। णगरस्स-नगर के। बहिया-बाहिर। एगं महं-एक बहुत बड़ी। कूडागारसालं-कूटाकारशाला-षड्यन्त्र करने के लिए बनाया जाने वाला घर / करेइ-तैयार कराओ, जिस में। अणेगखंभसयसंनिविटुं-सैंकड़ों स्तम्भ-खम्भे हों और जो। पासाइयं ४-प्रासादीय-मन को हर्षित करने वाली, दर्शनीय-बारम्बार देख लेने पर भी जिस से आंखें न थकें, अभिरूप-जिसे एक बार देख लेने पर भी पुनः दर्शन की लालसा बनी रहे, तथा प्रतिरूप-अर्थात् जिसे जब भी देखा जाए तब ही वहां नवीनता ही प्रतीत हो। एयमटुं-इस आज्ञा का। पच्चपिणह-प्रत्यर्पण करो अर्थात् बनवा कर मुझे सूचना दो। तते णं-तदनन्तर / ते-वे। कोडुंबियपुरिसा-कौटुम्बिक पुरुष। करतल-दोनों हाथ जोड़। जावयावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि रख कर। पडिसुणेति पडिसुणेत्ता-स्वीकार करते हैं, प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [697