________________ २-देशावकाशिक व्रत- श्रावक के छठे व्रत में दिशाओं का जो परिमाण किया गया है, उस का तथा अन्य व्रतों में की गई मर्यादाओं को प्रतिदिन कम करना। तात्पर्य यह है / कि किसी ने आजीवन, वर्ष या मासादि के लिए "-मैं पूर्व दिशा में सौ कोस से आगे नहीं जाऊँगा-" यह मर्यादा की है, उस का इस मर्यादा को एक दिन के लिए, प्रहर आदि के लिए और कम कर लेना अर्थात् आज के दिन मैं पूर्व दिशा में दस कोस से आगे नहीं जाऊँगा, इस तरह पहली मर्यादा को संकुचित कर लेना या मर्यादित उपभोग्य और परिभोग्य पदार्थों में से अमुक का आज दिन के लिए या प्रहर आदि के लिए सेवन नहीं करूंगा, इस भान्ति पूर्वगृहीत व्रतों में रखी मर्यादाओं को दिन भर या दोपहर आदि के लिए मर्यादित करना देशावकाशिक व्रत कहलाता है। उपभोग्य और परिभोग्य पदार्थों का 26 बोलों में संग्रह किया गया है, यह पूर्व कहा जा चुका है। परन्तु श्रावक के लिए प्रतिदिन चौदह नियमों के चिन्तन या ग्रहण करने की जो हमारी समाज में प्रथा है वह भी इस देशावकाशिक व्रत का ही रूपान्तर है। अतः यथाशक्ति उन चौदह नियमों का ग्रहण अवश्य होना चाहिए। इस नियम के पालन से महालाभ की प्राप्ति होती है। चौदह नियमों का विवरण निम्नोक्त है १-सचित्त-पृथ्वी, पानी, वनस्पति, सुपारी, इलायची, बादाम, धान्य, बीड़ा आदि सचित्त वस्तुओं का यथाशक्ति त्याग अथवा परिमाण करना चाहिए कि मैं इतने द्रव्य और इतने वजन से अधिक उपयोग में नहीं लाऊंगा। २-द्रव्य-जो पदार्थ स्वाद के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार से तैयार किए जाते हैं, उन के विषय में यह परिमाण होना चाहिए कि आज मैं इतने द्रव्यों से अधिक का उपयोग नहीं करूंगा। ३-विगय-दूध, दही, घृत, तेल और मिठाई ये पांच सामान्य विगय हैं। इन पदार्थों का जितना भी त्याग किया जा सके उतनों का त्याग कर देना चाहिए, अवशिष्टों की मर्यादा करनी चाहिए। ___मधु, मक्खन ये दो विशेष विगय हैं / इन का निष्कारण उपयोग करने का त्याग करना तथा सकारण उपयोग करने की मर्यादा करना। मद्य और मांस ये दो महाविगय हैं, इन दोनों का सेवन अधर्ममूलक एवं दुर्गतिमूलक होने से इनको सर्वथा छोड़ देना चाहिए। ४-पन्नी-पांव की रक्षा के लिए जो जूते, मोजे, खड़ाऊं, बूट, चप्पल आदि चीजें धारण की जाती हैं, उन की मर्यादा करना। ५-ताम्बूल-जो वस्तु भोजनोपरान्त मुखशुद्धि के लिए खाई जाती है, उन की गणना ताम्बूल में है। जैसे-पान, सुपारी, चूर्ण आदि इन सब की मर्यादा करना। 842 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय . [द्वितीय श्रुतस्कन्ध