________________ अनगार को। पहिलाभिए-प्रतिलाभित किया गया। जाब-पावत् / सिद्ध-सिद्ध हुआ। निवखेबो-निक्षेष- . उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। नवम-नवम। अापण-अध्ययन / समत्तसम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-नवम अध्यपन का उक्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भाँति जान लेना चाहिए। जम्बू / चम्पा नामक नगरी थी, वहां पूर्णभद्र नामक उपान था, उस में पूर्णभद्र पक्ष का आपतन-स्थान था। वहां के राजा का नाम दत्त था और रानी का नाम रक्तवती था, उन के पुवराजपदालंकृत महाचन्द्र नाम का कुमार था, उस का श्रीकान्ता प्रमुख 500 राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। एक दिन पूर्णभद्र उद्यान में तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे। महाचन्द्र ने उम से श्रावक के बारह व्रतों का ग्रहण किया। गणधर देव गौतम स्वामी ने दत्त के पूर्वभव की पृच्छा की। भगवान् महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि चिकित्सिका नामक नगरी थी। महाराज जितशत्रु वहां का राजा था। उस ने धर्मवीपं अनगार को प्रतिलाभित किया। पावत् सिद्धपद-मोक्षपद को प्राप्त किया। ॥नवम अध्ययन समाप्त। टीका-अष्टम अध्ययन के अनन्तर नवम अध्ययन का स्थान है। नवम अध्ययन की प्रस्तावना को सूचित करने के लिए सूत्रकार ने-उक्खेवो-यह पद दिया है। उत्क्षेप पद से अभिमत प्रस्तावनारूप सूत्राश-जाण भंते / समणेण भगवपा महावीरेण जाव सम्पत्तण सुहविवागाणं अतुमस्स अझपणस्स अपमड्ढे पण्णते, नवमस्स भंते / अझपणस्स समणेण भगवया महावीरण जाव सम्पत्तण के अहे पण्णते? अर्थात् यदि भदन्त / यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के अष्टम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के नवम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?-इस प्रकार है। प्रस्तुत अध्ययन के पदार्थ में चरित्रनायक का नाम महाचन्द्र या महचन्द्र है। यह महाराज दत्त का पुत्र और रक्तवती का आत्मज तथा युवराज पद से अलंकृत था। इस का 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। इस की पटरानी का नाम श्रीकान्तादेवी था। पूर्वभव में यह चिकित्सिका नगरी का जितशत्रु नामक राजा था। प्रजापरायण होने के अतिरिक्त यह धर्मपरायण भी था। इस ने धर्मवीर्य नाम के एक अनगार को श्रद्धापूर्वक आहारदान दिया। उस के प्रभाव से यह इस चम्पानगरी में महाचन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ। जब तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी चम्पा के पूर्णभद्र उद्यान में पधारे तो महाचन्द्र ने श्रावक के बारह व्रतों का नियम 948 ] श्री विषाक्क सूत्रम् / नवम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कंध