Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 1001
________________ सुप्रसिद्ध नगर था। वहां उत्तरकुरु नामक उद्यान था, उस में पाशामृग नाम के पक्ष का / पक्षायतन-स्थान था। साकेत नगर में महाराज मित्रनन्दी का राज्य था। उस की रानी का नाम श्रीकान्ता और पुत्र का नाम वरदत्त था। कुमार का वरसेनाप्रमुख 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण-विवाह हुआ था। तदनन्तर किसी समय उत्तरकुरा उपान में तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी का आगमन हुआ। वरदत्त ने भगवान् से भावकधर्म को ग्रहण किया। गणधरदेव के पूछने पर भगवान् महावीर वरदात के पूर्वभव का वर्णन करते हुए कहने लगे कि हे गौतम ! शतद्वार नामक नगर था। उस मैं विमलवाहन नाम का राजा राज्य किया करता था। उसने धर्माधि नाम के अनगार को आहारादि से प्रतिलाभित किया तथा मनुष्य आयु को बांधा। वहां की भवस्थिति को पूर्ण कर के वह इसी साकेतनगर में महाराज मित्रनन्दी की रानी श्रीकान्ता के उदर से वरदात के रूप में उत्पन्न हुआ।शेष वृत्तान्त सुबा कुमार की भाँति समझना अर्थात् पौषधशाला में धर्मध्यान करते हुए उसका विचार करना और तीर्थकर भगवान् के आने पर दीक्षा अंगीकार करना। मृत्युधर्म को प्राप्त कर वह अन्यान्य अर्थात् सौधर्म आदि देवलोकों में उत्पन्न होगा। वरदात कुमार का जीव स्वर्गीय तथा मानवीय अनेकों भव धारण करता हुआ अन्त में सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न हो दलप्रतिज्ञ की तरह पावत् सिद्धगति को प्राप्त करेगा। हे जम्बू / इस प्रकार पावत् मोक्षसंप्राप्त भ्रमण भगवान महावीर में सुखविपाक के दशवें अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। ऐसा मैं कहता हूँ। ___जम्बू स्वामी बोले-भगवन् ! आप का यह सुखविपाकविषयक कथन जैसा कि आपने फ़रमाया है, वैसा ही है, वैसा ही है। ॥दशम अध्ययन समाप्त॥ ___टीका-दसमस्स उक्खेवो-दशमस्योत्क्षेपः-इन पदों से सूत्रकार ने दशम अध्ययन की प्रस्तावना सूचित की है, जो कि सूत्रकार के शब्दों में-जाणं भंते / समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुरुविवागाणं णवमस्स अपमयणस्स अपमढे पण्णत्ते, दसमस्स ण भते / अझपणस्स समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तण के अड्डे पण्णते ? इस प्रकार है। इन पदों का अर्थ मूलार्थ में दिया जा चुका है। प्रस्तुत अध्ययन का चरित्रनायक बरदत्तकुमार है। घरदत्त का जीवनवृत्तान्त भी प्रायः सुबाहु कुमार के समान ही है। जहां कहीं नाम और स्थानादि का अन्तर है, उस का निर्देश सूत्रकार ने स्वयं कर दिया है। यह अन्तर नौच्चे की पंक्तियों में दिया जाता है श्री विधाक सूत्रम् / वशम अध्याय [वित्तीय श्रुतस्कंध

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