Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 993
________________ धा। धम्मपोसे-धर्मघोष / गाहावा-गाधापति था / धम्मसीह-धर्मसिंह / अणगारे-अनगार को। पडिलाभिए- .. प्रतिलाभित किया गया। जाब-यावत्। सिद्ध-सिद्ध हो गया। निक्लेवा-निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्ववत् कर लेनी चाहिए। भकुर्म-अहम / अझपण-अध्ययन / समत-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-अष्टम अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिए। सुपोष नामक नगर था। वहां देवरमण नामक उपान था। उस में वीरसेन नामक पक्ष का स्थान था। नगर में अर्जुन नाम के राजा का राज्य था। उसकी तत्ववती रानी और भवनन्दी नामक कुमार था। उसका श्रीदेवी प्रमुख 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। उस समय तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी उद्यान में पधारे। तदनन्तर भद्रनन्दी का भगवान् से भावकधर्म स्वीकार करना। गणधरदेव गौतम स्वामी का भगवान् से उस के पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा करनी और भगवान का उत्तर देते हुए फरमाना कि गौतम / महापोष नगर था। वहां धर्मघोष नामक गाथापति रहता था। उसने : धमसिंह नामक अनगार को प्रतिलाभित किया और मनुष्य आयु का बन्ध करके वह पहां पर उत्पन्न हुआ, पावत् उस ने सिद्धगति को उपलब्ध किया। निक्षेप की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिए। टीका-प्रस्तुत अध्ययन के चरितनायक का नाम भद्रनन्दी है। भद्रनन्दी का जन्म सुघोषनगर में हुआ। पिता का नाम महाराज अर्जुन और माता का नाम तत्त्ववती देवी था। भद्रनन्दी का पालन-पोषण बड़ी सावधानी से हुआ। योग्य कलाचार्य के पास उस ने विद्याध्ययन किया। माता-पिता द्वारा युवक भद्रनन्दी का श्रीदेवी प्रमुख 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह सम्पन्न हुआ और भद्रनन्दी भी उन राजकुमारियों के साथ अपने महलों में सांसारिक सुखोपभोग करता हुआ सानन्द जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन चरम तीर्थकर पतितपावन भगवान् महावीर स्वामी संसार में अहिंसा का ध्वज फहराते हुए सुघोष नगर के देवरमण नामक उद्यान में विराजमान हो जाते हैं। भगवान् के पधारने की सूचना नागरिकों को मिलने की ही देर थी, नागरिक बड़े समारोह के साथ वहां जाने लगे। राजा, भद्रनन्दी कुमार तथा नागरिकों के यथास्थान उपस्थित हो जाने पर भगवान् नै धर्मोपदेश दिया। उपदेश सुन कर लोग, राजा तथा नागरिक अपने-अपने स्थान को वापस चले गए, तब भद्रनन्दी कुमार ने साधुधर्म को ग्रहण करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए भगवान् से श्रावकब्रतों को ग्रहण किया और तदनन्तर वह जिस रथ से आया था उस पर बैठ कर अपने स्थान को वापस चला गया। भवनन्दी के चले जाने पर गौतम स्वामी नै भद्रनन्दी को मानवीय ऋद्धि के मूल कारण 144] श्री विषाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय [द्वितीय श्रुतर्क

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