________________ अह अट्ठमं अज्झयणं अथ अष्टम अध्याय ___ इस अध्ययन की रचना भी सुपात्रदान के महत्त्वबोधनार्थ ही हुई है। धर्म का आराधन इस मानव को कितना ऊंचा ले जाता है तथा उसे अपने गन्तव्य स्थान को प्राप्त कराने में कितना सहायक होता है, यह भद्रनन्दी के जीवनवृत्तान्तों से सहज ही हृदयंगम हो सकता है। भद्रनन्दी का विवरण निम्नोक्त है मूल-अट्ठमस्स उक्खेवो। सुघोसं णगरं। देवरमणं उजाणं। वीरसेणो जक्खो। अजुणो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरीदेवीपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं जाव पुव्वभवे। महाघोसे णगरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। निक्खेवो। ॥अट्ठमं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-अष्टमस्योत्क्षेपः। सुघोषं नगरम्। देवरमणमुद्यानम्। वीरसेनो यक्षः। अर्जुनो राजा। तत्त्ववती देवी। भद्रनन्दी कुमारः। श्रीदेवीप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम्। यावत् पूर्वभवः। महाघोषं नगरम्। धर्मघोषो गाथापतिः। धर्मसिंहोऽनगारः प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः। निक्षेपः। ॥अष्टमाध्ययनम् समाप्तम्॥ पदार्थ-अट्ठमस्स-अष्टम अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिए। सुघोसं-सुघोष नाम का। णगरं-नगर था। देवरमणं-देवरमण नामक। उजाणं-उद्यान था। वीरसेणो-वीरसेन। जक्खो-यक्ष का आयतन-स्थान था। अजुणो-अर्जुन। राया-राजा था। तत्तवईतत्त्ववती। देवी-देवी थी। भद्दनन्दी-भद्रनन्दी नामक। कुमारे-कुमार था। सिरीदेवीपामोक्खाणंश्रीदेवीप्रधान। पंचसयाणं-५०० / रायवरकन्नगाणं-श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ। पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण किया गया। जाव-यावत्। पुव्वभवे-पूर्वभव की पृच्छा की गई। महाघोसे-महाघोष नामक। णगरे-नगर द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् /अष्टम अध्याय [983