________________ में यह अर्थ अक्षरशः संघटित होता है और उन की गुणसम्पदा के सर्वथा अनुरूप है। ...स्थविर-स्थविर शब्द का अर्थ सामान्यरूप से वृद्ध-बूढ़ा या बड़ा होता है। प्रकृत में इस का "वृद्ध या बड़ा साधु-" इस अर्थ में प्रयोग हुआ है। 'आगमों में तीन प्रकार के स्थविर बताये गए हैं-जातिस्थविर, सूत्र-श्रुतस्थविर और पर्यायस्थविर। साठ वर्ष की आयु वाला जातिस्थविर, श्री स्थानांग और समवायांग का पाठी-जानकार सूत्रस्थविर और बीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाला पर्यायस्थविर कहलाता है। यद्यपि धर्मघोष अनगार में इन तीनों में से कौन सी स्थविरता थी, इस का उल्लेख प्रस्तुत सूत्र में नहीं है और न ही टीका में है, तथापि सूत्रगत वर्णन से उन में उक्त तीनों ही प्रकार की स्थविरता का होना निश्चित होता है। पांच सौ शिष्य परिवार के साथ विचरने वाले महापुरुष में आयु, श्रुत और दीक्षापर्याय इन तीनों की विशिष्टता होनी ही चाहिए। इस के अतिरिक्त जैनपरम्परा के अनुसार स्थविरों को तीर्थंकरों के अनुवादक कहा जाता है। तीर्थंकर देव के अर्थरूप संभाषण को शाब्दी रचना का रूप देकर प्रचार में लाने का काम स्थविरों का होता है। गणधरों या स्थविरों को यदि तीर्थंकरों के अमात्य-प्रधानमन्त्री कहा जाए तो अनुचित न होगा। जैसे राजा के बाद दूसरे स्थान पर प्रधानमंत्री होता है, उसी प्रकार तीर्थंकरों के बाद दूसरे स्थान पर स्थविरों की गणना होती है, और जैसे राज्यसत्ता को कायम तथा प्रजा को सुखी रखने के लिए प्रधानमन्त्री का अधिक उत्तरदायित्व होता है, उसी प्रकार अरिहन्तदेव के धर्म को दृढ़ करने और फैलाने का काम स्थविरों का होता है। तब तीर्थंकर देव के धर्म को आचरण और उपदेश के द्वारा जो स्थिर रखने का निरन्तर उद्योग करता है, वह स्थविर है, यह अर्थ भी अनायास ही सिद्ध हो जाता है। जातिसम्पन्न-धर्मघोष स्थविर को जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न और बलसम्पन्न आदि विशेषणों से विशेषित करने का अभिप्राय उन के व्यक्तित्व को महान् सूचित करता है। जाति शब्द माता के कुल की श्रेष्ठता का बोधक है और कुल शब्द पिता के वंश की उत्तमता का बोधक होता है। धर्मघोष स्थविर को जातिसम्पन्न और कुलसम्पन्न कहने से उन की मातृकुलगत तथा पितृकुलगत उत्तमता को व्यक्त किया गया है। अर्थात् वे उत्तम कुल और उत्तम वंश के थे, वे एक असाधारण कुल में जन्मे हुए थे। ___प्रश्न-एक ही नगर में एक साथ पाँच सौ मुनियों को लेकर श्री धर्मघोष जी महाराज का पधारना, यह सन्देह उत्पन्न करता है कि एक साथ पधारे हुए पांच सौ मुनियों का वहां 1. तओ थेरभूमीओ प० त०-जाइथेरे, सुत्तथेरे, परियायथेरे.... वीसवासपरियाएणं समणे णिग्गंथे परियायथेरे (स्थानांगसूत्र स्थान 3, उ० 3, सू० 159 / 2. श्री ज्ञातासूत्र आदि में गणधरदेवों को भी स्थविरपद से अभिव्यक्त किया गया है। द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [877