________________ ने इतना ही लिख दिया है कि-जहा दढपइण्णे-अर्थात् इस के आगे का सारा जीवन वृत्तान्त दृढ़प्रतिज्ञ की तरह जान लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेने के बाद सुबाहुकुमार ने वही कुछ किया जो कुछ श्री दृढ़प्रतिज्ञ ने किया था। इस से दृढ़प्रतिज्ञ के वृत्तान्त की जिज्ञासा स्वतः ही उत्पन्नः हो जाती है। दृढ़प्रतिज्ञ का सविस्तर वर्णन तो औपपातिक सूत्र में किया गया है। उस का प्रकरणानुसारी संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है गौतम-भदन्त ! अम्बड़ परिव्राजक का जीव देवलोक से च्युत हो कर कहां जाएगा? कहां पर जन्म लेगा? भगवान्-गौतम ! महाविदेह नाम का एक कर्मभूमियों का क्षेत्र है। उस में अनेकों धनाढ्य एवं प्रतिष्ठित कुल हैं। अम्बड़ परिव्राजक का जीव देवलोक से च्युत हो कर उन्हीं कुलों में से एक विख्यात कुल में जन्म लेगा। जिस समय वह माता के गर्भ में आएगा, उस समय उस के माता-पिता की श्रद्धा धर्म में विशेष दृढ़ होने लगेगी। गर्भ काल के पूर्ण होने पर जब वह जन्म लेगा तो उस का शारीरिक सौन्दर्य बड़ा अद्भुत और विलक्षण होगा। उस के गर्भ में आने से माता-पिता की धार्मिक श्रद्धा में विशेष दृढ़ता उत्पन्न होने के कारण माता-पिता अपने नवजात बालक का दृढ़प्रतिज्ञ-यह गुणनिष्पन्न नाम रखेंगे। माता-पिता के समुचित पालनपोषण से वृद्धि को प्राप्त करता हुआ दृढ़प्रतिज्ञ बालक जब आठ वर्ष का हो जाएगा तो उसे एक सुयोग्य कलाचार्य को सौंपा जाएगा। विनयशील दृढ़प्रतिज्ञ कुशाग्रबुद्धि होने के कारण थोड़े ही समय में विद्यासम्पन्न और कलासम्पन्न होने के साथ-साथ युवावस्था को भी प्राप्त हो जाएगा। तदनन्तर प्रतिभाशाली युवक दृढ़प्रतिज्ञ को सांसारिक विषयभोगों के उपभोग में समर्थ हुआ जान कर उसके उसे सांसारिक बन्धन में फंसाने का यत्न करेंगे, परन्तु वह अनेक प्रकार के प्रयत्न करने पर भी इस बन्धन में आने के लिए सहमत नहीं होगा। अपने ब्रह्मचर्य को अखण्डं रखने का वह पूरा-पूरा ध्यान रखेगा। तदनन्तर किसी तथारूप श्रमण की संगति से उसे सम्यक्त्व का लाभ होगा। उस की प्राप्ति से उस में वैराग्य की भावना जागृत होगी और अन्त में वह मुनिधर्म को अंगीकार कर लेगा। गृहीत संयम व्रत का यथाविधि पालन करता हुआ मुनि दृढ़प्रतिज्ञ ज्ञान, दर्शन और चारित्र की निरतिचार आराधना से कर्ममल का नाश करके आत्मविकास की पराकाष्ठा-केवलज्ञान को प्राप्त कर लेगा। भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! तदनन्तर अनेकों वर्ष केवली अवस्था में रह कर अनगार दृढ़प्रतिज्ञ मासिक संलेखना (आमरण अनशनव्रत) से शरीर को त्याग कर अपने ध्येय को प्राप्त करेगा। अर्थात् जिस प्रयोजन के लिए उस ने सर्व प्रकार के सांसारिक पदार्थों से मोह द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [953