Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 971
________________ एक दिन श्रमणोपासक भद्रनन्दी पौषधशाला में जा कर पौषधोपवास करता है। वहां तेले की तपस्या से आत्मचिन्तन करते हुए भद्रनन्दी को सुबाहुकुमार की तरह विचार उत्पन्न हुआ कि धन्य हैं वे नगर और ग्रामादिक, जहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी भ्रमण करते हैं, धन्य हैं वे राजा, महाराजा और सेठ साहुकार जो उन के चरणों में दीक्षित होते हैं और वे भी धन्य हैं जिन्होंने भगवान् महावीर से पञ्चाणुव्रतिक गृहस्थधर्म को स्वीकार किया है। तब यदि अब की बार भगवान् यहां पधारेंगे तो मैं भी उन के पास मुनिदीक्षा को धारण करूंगा-इत्यादि। तदनन्तर अपने उक्त विचार को निश्चित रूप देने की भावना के साथ-साथ गृहीतव्रत की अवधि समाप्त होने पर भद्रनन्दी ने व्रत का पारणा किया और वह भगवान् के आगमन की प्रतीक्षा में समय बिताने लगा। कुछ समय के बाद भगवान् महावीर स्वामी जब वहां पधारे तो भद्रनन्दी ने उन के चरणों में मुनिवृत्ति को धारण करके अर्थात् मुनिधर्म की दीक्षा ग्रहण करके अपने शुभ विचार को सफल किया, तथा गृहीत संयमव्रत के सम्यग् आराधन से आत्मशुद्धि द्वारा विकास को भी सम्प्राप्त किया। इस के अतिरिक्त निर्वाण पद प्राप्ति तक भद्रनन्दी का सम्पूर्ण इतिवृत्त सुबाहुकुमार की भाँति ही जान लेना चाहिए। प्रथम अध्याय में सुबाहुकुमार के जीवन का जो विकासक्रम वर्णित हुआ है, वहीं सब भद्रनन्दी का है। जहां कहीं कुछ विभिन्नता थी, उस का उल्लेख मूल में सूत्रकार द्वारा स्वयं ही कर दिया गया है। शेष जीवन, जन्म से लेकर मोक्षपर्यन्त सब सुबाहुकुमार के जीवन के समान ही होने से सूत्रकार ने उसका उल्लेख नहीं किया। इसीलिए विवेचन में भी उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा गया। कारण कि सुबाहुकुमार के जीवन-वृत्तान्त में प्रत्येक बात पर यथाशक्ति पूरा-पूरा प्रकाश डालने का यत्न किया गया है। सूत्रकार ने पुण्यश्लोक परमपूज्य श्री सुबाहुकुमार के जीवनवृत्तान्त से स्वनामधन्य श्री भद्रनन्दी के जीवनवृत्तान्त से अधिकाधिक समानता के दिखाने के लिए ही मात्र-उसभपुरे णगरे थूभकरंडगं-इत्यादि पद, तथा-पासाय० सावगधम्म०-यहां बिन्दु-सुबाहुस्स जाव महाविदेहे-यहां जाव-यावत् पद दे कर वर्णित विस्तृत पाठ की ओर संकेत कर दिया है। अतः सम्पूर्ण पाठ के जिज्ञासु पाठकों को सुबाहुकुमार के अध्ययन का अध्ययन अपेक्षित है। नामगत भेद के अतिरिक्त अर्थगत कोई अन्तर नहीं है। ___ -निक्खेवो-का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह पीछे किया जा चुका है। प्रस्तुत में उस से संसूचित सूत्रांश निम्नोक्त है ___-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तेणं सुहविवागाणं बिइयस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।त्ति बेमि-अर्थात् हे जम्बू ! यावत् मोक्षसंप्राप्त 962 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [द्वितीय श्रुतस्कंध

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