________________ // चतुर्थमध्ययनं समाप्तम्॥ - पदार्थ-चउत्थस्स-चतुर्थ अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भांति जान लेना चाहिए। विजयपुरं-विजयपुर।णगरं-नगर था। नंदणवणं-नन्दनवन नामक। उजाणं-उद्यान था।असोगोअशोक नामक। जक्खो-यक्ष था। वासवदत्ते-वासवदत्त। राया-राजा था। कण्हा-कृष्णा। देवी-देवी थी। सुवासवे-सुवासव नामक। कुमारे-कुमार था। भद्दापामोक्खाणं-भद्राप्रमुख। पंचसयाणं-पांच सौ यावत् अर्थात् श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ। पुव्वभवे-पूर्वभवसम्बन्धी पृच्छा की गई। कोसंबीकौशांबी। णगरी-नगरी थी। धणपाल-धनपाल। राया-राजा था। वेसमणभद्दे-वैश्रमणभद्र / अणगारेअनगार को। पडिलाभिए-प्रतिलाभित किया। इहं-यहां। उप्पन्ने-उत्पन्न हुआ। जाव-यावत्। सिद्धेसिद्ध हुआ। निक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार पूर्व की भांति जान लेना चाहिए। चउत्थं-चतुर्थ। अज्झयणंअध्ययन / समत्तं-सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ-चतुर्थ अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भाँति जान लेना चाहिए। जम्बू! विजयपुर नाम का एक नगर था।वहां नन्दनवन नाम का उद्यान था।वहां अशोक नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहां के राजा का नाम वासवदत्त था। उस की कृष्णादेवी नाम की रानी थी और सुवासव नामक राजकुमार था। उस का भद्राप्रमुख 500 श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ।तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे।तब सुवासव कुमार ने उन के पास श्रावकधर्म को स्वीकार किया। गौतम स्वामी ने उस के पूर्वभव का वृत्तान्त पूछा। प्रभु ने कहा.. गौतम! कौशाम्बी नगरी थी, वहां धनपाल नाम का राजा था, उस ने वैश्रमणभद्र नामक अनगार को आहार दिया और मनुष्य आयु का बन्ध किया। तदनन्तर वह यहां पर सुवासवकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ यावत् मुनिवृत्ति को धारण कर के सिद्धगति को प्राप्त हुआ। निक्षेप की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिए। ॥चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥ टीका-जम्बू स्वामी की-भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ वर्णन किया है उसे भी सुनाने की कृपा करें, इस अभ्यर्थना के अनन्तर आर्य सुधर्मा स्वामी बोले-जम्बू ! विजयपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर था। उस के बाहर ईशान कोण में नन्दनवन नाम का उद्यान था। उस में अशोक यक्ष का एक विशाल यक्षायतन था। वहां के नरेश का नाम वासवदत्त था। उस की कृष्णा देवी नाम की रानी थी। उन के राजकुमार का नाम सुवासव था। वह बड़ा ही सुशील तथा सुन्दर था। एक बार विजयपुर के उक्त उद्यान में तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी पधारे। तब सुवासव ने उन से गृहस्थधर्म की पञ्चाणुव्रतिक दीक्षा ग्रहण की। सुवासव के सद्गुणसम्पन्न मानवीय वैभव को देख कर गणधर द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [969