________________ भगवया महावीरेणंजाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते?-अर्थात् यदि भगवन् ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के पंचम अध्याय का यह (पूर्वोक्त) अर्थ फरमाया है तो भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के छठे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है. ?-इन भावों का, तथा निक्षेप पद-एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते-अर्थात् हे जम्बू ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने छठे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है-, इन भावों का परिचायक है। ___-जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवे-यहां पठित जाव-यावत् पद धनपतिकुमार का भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में धर्मोपदेश सुनने के अनन्तर साधुधर्म को अंगीकार करने में अपना असामर्थ्य प्रकट करते हुए श्रावक धर्म को ग्रहण करना और जिस रथ पर सवार हो कर आया था, उसी रथ पर बैठ कर वापिस चले जाना। तदनन्तर गौतम स्वामी का उस के पूर्वजन्मसम्बन्ध में भगवान् से पूछना और भगवान् का पूर्वजन्म वृत्तान्त सुनाना इत्यादि भावों का, तथापडिलाभिए जाव सिद्धे-यहां पठित जाव-यावत् पद-मित्र राजा का संसार को परिमित करने के साथ-साथ मनुष्य आयु का बन्ध करना, और मृत्यु के अनन्तर युवराजपुत्र धनपतिकुमार के रूप में अवतरित होना तथा राजकीय ऐश्वर्य का उपभोग करते हुए जीवन व्यतीत करना। गौतम स्वामी का भगवान् महावीर से-धनपतिकुमार आपश्री के चरणों में साधु होगा, या कि नहीं ऐसा प्रश्न पूछना, भगवान का-हां गौतम ! होगा, ऐसा उत्तर देना। तदनन्तर भगवान् महावीर का वहां से विहार करना। एक दिन धनपतिकुमार का पौषधशाला में तेला पौषध करना, उस में भगवान् के चरणों में दीक्षित होने का निश्चय करना तथा भगवान् का कनकपुर नगर के श्वेताशोक उद्यान में पधारना, राजा, धनपतिकुमार तथा नागरिकों का प्रभुचरणों में धर्मोपदेश श्रवण करने के लिए उपस्थित होना और उपदेश सुन लेने के अनन्तर राजा तथा नागरिकों के चले जाने पर साधुधर्म में दीक्षित होने के लिए धनपतिकुमार का तैयार होना, तथा माता-पिता की आज्ञा मिलने पर भगवान् का उसे दीक्षित करना और मुनिराज धनपतिकुमार का बड़ी दृढ़ता तथा संलग्नता से संयमाराधन कर के अंत में केवलज्ञान प्राप्त करना, आदि भावों का परिचायक है। ॥षष्ठ अध्याय समाप्त॥ 978 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कंध