________________ अह छटुं अज्झयणं अथ षष्ठ अध्याय प्रथम अध्ययन से लेकर पांचवें अध्ययन तक सुपात्रदान की महिमा को श्री सुबाहुकुमार आदि नाम के विशिष्ट व्यक्तियों के जीवनवृत्तान्तों से समझाने का प्रयत्न किया गया है। उन्हीं अध्ययनों के विशद इतिवृत्त को ही इस अध्ययन में संक्षिप्त कर के श्री धनपति के जीवनवृत्तान्त द्वारा सुपात्रदान का महत्त्व दर्शाया गया है, जिस का विवरण निम्नोक्त है मूल-छट्ठस्स उक्खेवो। कणगपुरं णगरं। सेयासोयं उजाणं। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दादेवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरीदेवीपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं। तित्थगरागमणं। धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवे।मणिचइया णगरी।मित्तेराया।संभूयविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। निक्खेवो। - ॥छटुं अज्झयणं समत्तं॥ छाया-षष्ठस्योत्क्षेपः। कनकपुरं नगरम् / श्वेताशोकमुद्यानम्। वीरभद्रो यक्षः। प्रियचन्द्रो राजा / सुभद्रा देवी। वैश्रमणः कुमारो युवराजः। श्रीदेवीप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम्। तीर्थंकरागमनम्। धनपतिर्युवराजपुत्रो यावत् पूर्वभवः। मणिचयिका नगरी। मित्रो राजा। संभूतविजयोऽनगारः प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः। निक्षेपः। // षष्ठमध्ययनं समाप्तम्॥ पदार्थ-छट्ठस्स-छठे अध्ययन का। उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भाँति जानना चाहिए। कणगपुर-कनकपुर / णगरं-नगर था। सेयासोयं-श्वेताशोक नामक। उज्जाणं-उद्यान था, उस में। वीरभद्दो-- वीरभद्र नाम के। जक्खो-यक्ष का यक्षायतन था। पियचन्दो-प्रियचन्द्र / राया-राजा था। सुभद्दा-सुभद्रा 976 ] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय - [द्वितीय श्रुतस्कंध