________________ प्रस्थान करने वाले हैं उन्हें इस के दिव्यालोक में सुख का वास्तविक स्वरूप अवश्य उपलब्ध होगा। यह आत्मा सुख और आनन्द का अथाह सागर है। ज्ञान की अनन्त राशि है। शक्तियों का अखूट भंडार है। जिस को यह अपना वास्तविक रूप उपलब्ध हो जाता है, उस के लिए फिर कुछ भी अप्राप्य या अनुपलभ्य नहीं रहता। परन्तु इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए जिन साधनों को अपनाने की आवश्यकता होती है, वे सब प्रस्तुत अध्ययन के प्रतिपाद्य अर्थ में निर्दिष्ट हैं। जो साधक इन को आदर्श रख कर अपने जीवनपथ को निश्चित करेगा, वह महामहिम श्री सुबाहुकुमार की भांति एक न एक दिन अपने गन्तव्य स्थान को प्राप्त कर लेगा। यह निर्विवाद और निस्सन्देह है। ॥प्रथम अध्ययन समाप्त॥ 956 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतस्कन्ध