________________ विपरतिमहापुरुष परमार्थी होता है, अपने हित से भी वह दूसरों के हित का विशेष ध्यान रखता है। दोनों के साध्य भिन्न-भिन्न होते हैं, इसीलिए दोनों विभिन्न साधनसामग्री को जुटाने का भी विभिन्न प्रकार से प्रयास करते हैं। स्वार्थी पुरुष तो उस साधनसामग्री को ढूंढ़ता है जिस से अपना स्वार्थ सिद्ध हो, उस में दूसरे की हानि या नाश का उसे बिल्कुल ध्यान नहीं रहता, उसे तो मात्र अपने प्रयोजन से काम होता है, परन्तु महापुरुष ऐसा नहीं करता, वह तो ऐसी सामग्री को ढूंढेगा जिस से किसी दूसरे को हानि न पहुंचती हो, प्रत्युत लाभ ही प्राप्त होता हो। महापुरुषों का प्रत्येक प्रयास दूसरों को सुखी बनाने, दूसरों का कल्याण सम्पादित करने के लिए होता है। वे "-परोपकाराय सतां विभूतयः-." इस लोकोक्ति का बड़े ध्यान से संरक्षण करते हैं और अपनी धनसम्पत्ति या ज्ञानविभूति का वे दीन-दुःखी प्राणियों के दुःखों तथा कष्टों को दूर करने में ही उपयोग करते हैं। यही कारण है कि संसारसमुद्र में गोते खाने वाले दुःखसन्तप्त मानव प्राणी ऐसे महापुरुषों का आश्रय लेते हैं और उन्हें अपना उपास्य बना कर जीवन व्यतीत करने का उद्योग करते हैं। - सुबाहुकुमार जैसे भावुक तथा विनीत व्यक्ति की अपने उपास्य के प्रति कितनी श्रद्धा एवं विशुद्ध भावना है इस का वर्णन ऊपर हो चुका है। अपने उपासक की निर्मल भावना को जिस समय सुबाहुकुमार के परम उपास्य भगवान् महावीर स्वामी ने जाना तो सुबाहुकुमार के उद्धार की इच्छा से भगवान् ने हस्तिशीर्ष नगर की ओर प्रस्थान कर दिया। ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान् हस्तिशीर्ष नगर में पधारे और पुष्पकरण्डक नामक उद्यानगत कृतवनमालप्रिय यक्ष के मन्दिर में विराजमान हो गए। तदनन्तर उद्यानपाल के द्वारा भगवान् के पधारने की सूचना मिलते ही नगरनिवासी जनता को बड़ा हर्ष हुआ। भावुक नगरनिवासी लोग प्रसन्न मन से भगवान् के दर्शनार्थ उद्यान की ओर चल पड़े। इधर नगरनरेश भी सुबाहुकुमार को साथ ले कर बड़े समारोह के साथ उद्यान की ओर प्रस्थान करते हुए भगवान् की सेवा में उपस्थित हो जाते हैं तथा विधिपूर्वक वन्दनादि करके यथास्थान बैठ जाते हैं। प्रश्न-क्या भगवान् महावीर स्वामी के पास शिष्य नहीं थे ? यदि थे तो क्या वे भगवान् की सेवा नहीं करते थे ? यदि करते थे तो केवल एक शिष्य की लालसा से उन्हें स्वयं पैदल विहार कर इतना बड़ा कष्ट उठा कर हस्तिशीर्ष नगर में आने की आवश्यकता क्यों प्रतीत हुई? उत्तर-भगवान् महावीर स्वामी के शिष्यों की कुल संख्या 14 हजार मानी जाती है और उन में गौतम स्वामी जैसे परमविनीत, परमतपस्वी और मेधावी अनगार मुख्य थे। सब के सब भगवान् के चरणकमलों के भ्रमर थे और भगवान् के हित के लिए अपना सर्वस्व अर्पण द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [919