________________ वाले कमल की भाँति यह कामभोगों में आसक्त नहीं हुआ। जिन दुःखों को इस ने अतीत जन्मों में अनेक बार सहा है, उन से यह विशेष भयभीत है। अनागत में अतीत के समान दुःखों को न पाऊं, इस भावना से यह आपश्री के चरणों में उपस्थित हो रहा है। अतः इस की इस पुनीत भावना को पूर्ण करने की आप इस पर अवश्य कृपा करें। माता-पिता के इस निवेदन के अनन्तर भगवान् महावीर स्वामी की ओर से शिष्यभिक्षा की स्वीकृति मिलने पर मेघकुमार भगवान् के पास से उठ कर ईशान कोण में चले जाते हैं, वहां जाकर उन्होंने शरीर पर के सारे बहुमूल्य वस्त्राभूषणों को उतारा और उन्हें माता के सुपुर्द किया। माता धारिणी ने भी उन्हें सुरक्षित रख लिया। तदनन्तर माता और पिता मेघकुमार को सम्बोधित करते हुए बोले * पुत्र ! हमारी आन्तरिक इच्छा न होने पर भी हम विवश हो कर तुम को आज्ञा दे रहे हैं, किन्तु तुम ने इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखना है कि जिस कार्य के लिए तुम ने राज्यसिंहासन को ठुकराया है उस को सफल करने के लिए पूरा-पूरा उद्योग करना और पूरी सफलता प्राप्त करनी। तुम क्षत्रिय-कुमार हो, इसलिए संयमव्रत के सम्यक् अनुष्ठान में कर्मशत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में पूरी-पूरी आत्मशक्ति का प्रयोग करना और अपने कर्तव्यपालन में प्रमाद को कभी स्थान न देना / उस से हर समय सावधान रहना। हम भी उसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब तेरी ही तरह संयमशील बन कर कर्मरूपी शत्रुओं के साथ युद्ध करने के लिए अपने आप को प्रस्तुत करेंगे। इस प्रकार पुत्र को समझा कर महाराज श्रेणिक और महारानी धारिणी भगवान् को वन्दना-नमस्कार कर के अपनी राजधानी की ओर प्रस्थित हुए। माता-पिता के चले जाने के बाद मेघकुमार ने पंचमुष्टि लोच कर के भगवान् के पास आकर विधिपूर्वक वन्दन किया और हाथ जोड़ कर इस प्रकार प्रार्थना की . प्रभो ! यह संसार जरामरणरूप अग्नि से जल रहा है। जिस तरह जलते हुए घर में से सर्वप्रथम बहुमूल्य पदार्थों को निकालने का यत्न किया जाता है, उसी प्रकार मैं भी अपनी अमूल्य आत्मा को संसार की अग्नि से निकालना चाहता हूँ। मेरी उत्कट इच्छा यही है कि मुझे इस अग्नि में न जलना पड़े। इसीलिए मैं आपश्री के चरणों में दीक्षित होना चाहता हूँ। कृपया मेरी इस कामना को पूरा करो। मेघकुमार की इस प्रार्थना पर भगवान् ने उसे मुनिधर्म की दीक्षा प्रदान की और मुनिधर्मोचित शिक्षाएं देकर उसे मुनिधर्म की सारी चर्या समझा दी तथा मेघकुमार भी भगवान् वीर के आदेशानुसार संयमव्रत का यथाविधि पालन करते हुए समय व्यतीत करने लगे। यह है मेघकुमार का दीक्षा तक का जीवनवृत्तान्त, जिस से श्री सुबाहुकुमार की दीक्षा द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [933