________________ राज्य को" इस बात का भी भलीभाँति निर्णय हो जाएगा। इस के अतिरिक्त राज्य को त्याग कर संयम लेने से संसार पर विशिष्ट प्रभाव पड़ेगा और संयम के महत्त्व का संसार को पता लगेगा। मेघकुमार भी माता के उक्त कथन (एक दिन की राज्यश्री का उपभोग अवश्य करो) का अभिप्राय समझ गया और जैसे सोने की असली परीक्षा अग्नि में तपा कर ही होती है वैसे ही मुझे भी अपनी दृढ़ता की परीक्षा राज्य लेकर देनी होगी। यह सोच उस ने राज्य लेने की स्वीकृति दे दी और माता के अनुरोध को शिरोधार्य कर उस की भावना को पूरा किया। दूसरे दिन मेघकुमार का बड़ा समारोह के साथ राज्याभिषेक करके उसे राजा बना दिया गया। मेघकुमार राज्यसिंहासन पर बैठा और उसके ऊपर छत्र और दोनों ओर चामर ढुलाये जाने लगे। राज्यसत्ता मेघकुमार को अर्पण कर दी गई। दूसरे शब्दों में उसे राज्यशासन का सारा भार सौंप दिया गया। महाराज श्रेणिक और महारानी धारिणी अपने पुत्र को राजगृहनरेश के रूप में देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और सप्रेम कहने लगे कि पुत्र ! किसी वस्तु की इच्छा है ? तब मेघ नरेश ने उत्तर दिया-मुझे रजोहरण और पात्र चाहियें और शिरोमुंडन के लिए एक नाई चाहिए। __महाराज श्रेणिक तथा माता धारिणी ने जब यह देखा कि मेघकुमार अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है और उसे किसी ढंग से आपात्रमणीय सांसारिक कामभोगों में फंसाया नहीं जा सकता। अब तो यह प्रभु वीर के चरणों में दीक्षित हो कर अपना आत्मश्रेय साधने में अत्यधिक उत्सुक एवं उस के लिए सन्नद्ध हो रहा है। तब उन्होंने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर कहा कि भद्र पुरुषो ! राज्य के कोष में से तीन लाख मोहरें निकाल लो। उन में से दो लाख मोहरों द्वारा रजोहरण और पात्र ले आओ, एक लाख मोहरें नापित-नाई को दे डालो, * 'जो दीक्षित होने के पूर्व कुमार का शिरोमुण्डन करेगा। कौटुम्बिक पुरुषों ने महाराज की इच्छा के अनुसार वह सब कुछ कर दिया। तब दीक्षामहोत्सव की तैयारी होने लगी। सब से प्रथम मेघकुमार को एक पट्टासन पर बैठा कर सोने और चांदी के कलशों से स्नान कराया गया। शरीर को पोंछ कर सुन्दर से सुन्दर तथा बहुमूल्य वस्त्राभूषण पहनाये गए। सुगन्धित द्रव्यों का लेपन किया गया। तत्पश्चात् सेवकों को पालकी लाने की आज्ञा दी गई। आज्ञा मिलते ही सेवकवृन्द एक सुन्दर सुसज्जित और एक हज़ार आदमियों के द्वारा उठाई जाने वाली पालकी ले आये। उस पालकी में पूर्व की ओर मुख कर के मेघकुमार बैठ गये। उन के पास ही महारानी धारिणीं भी अच्छे-अच्छे वस्त्रालंकार पहन कर बैठ गई। मेघकुमार के बाईं ओर उन की धाय माता रजोहरण और पात्र ले कर बैठ - द्वितीय श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [931